पूर्णिया/रूपौली/अभय कुमार सिंह : कहते हैं हर इंसान की अपनी अलग-अलग सोच होती है तथा वे उस दायरा में रहकर अच्छे या बूरे कामों में लगे रहते हैं । इन्हीं में से एक बिरौली बाजार के विपीन बिहारी, जिन्होंने अपनी जिंदगी का मकसद ही सांप पकड़ना बना लिया है तथा उन सांपों को नई जिंदगी देने के लिए जंगलों में छोड़ आना ही अपनी सबसे बड़ी कामयाबी मानते हैं । इसमें कोई भी जहरीला-से-जहरीला सांप हो, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है ।
वे पिछले 10 वर्षों से अपनी जिंदगी का मकसद बना रखा है । यद्यपि उन्हें जहरीले नाग ने डसा भी, 24 घंटों तक रेफरल अस्पताल, रूपौली में जीवन-मौत से संघर्ष भी किया, परंतु अपनी जिंदगी का मकसद नहीं भूले हैं । रविवार को तेलडीहा गांव स्थित एसबीआई शाखा के पास एक कोबरा राजीव सिंह के घर में नाग घुस आया था, जिसे उन्होंने सकुशल पकड़ा तथा बोरे में बंद कर ले गए तथा नहर पर उगे जंगल में छोड़ आए । इस दौरान उन्होंने अपनी जिंदगी के मकसद की बातें बताईं ।
उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में सांप को प्रायः लोग मार देते हैं, जिससे उन्हें बचपन से ही बहुत पीडा पहुंचती थी । इसलिए जैसे ही उन्होंने होश संभाला, सांपों को बचाने का अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया । पहले सांप पकड़ने में उन्हें डर लगता था, परंतु धीरे-धीरे उनका डर समाप्त हो गया । अब वे निधड़क सांपों को पकड़ लेते हैं । उन्होंने बताया कि सांप को लोग घबडाहट में तथा डर से मार देते हैं, जबकि सांप पर्यावरण को संतुलित रखते हैं ।
उन्होंने कहा कि वे जहां भी जाते हैं, सांप के बारे में लोगों को जागरूक जरूर करते हैं, ताकि सांपों को मारने से पहले उन्हें जरूर फोन करें । वे सांप की बात सुनते ही चाहे कितना ही बडा काम हो, वे सांप को बचाने पहुंच ही जाते हैं । वे समझते हैं कि उनकी थोडी-सी देरी से सांप को मारा जा सकता है, इसलिए आजतक कभी कोताही नहीं बरती है । लोगों को समझना होगा कि सांप अगर नहीं रहेंगे, तो यह पर्यावरण प्रदूषित हो जाएगा । इसलिए सांप को पकड़ना हर व्यक्ति को सीखना चाहिए, बस इसमें सावधानी की जरूरत है ।
उन्हेांने कहा कि अपने भारत में अलग-अलग वातावरण में 316 प्रजातियों में मात्र चार प्रकार के जहरीले सांप होते हैं, जिसमें एक गेहूंअन या कोबरा या नाग, करैत, रसल वाईपर एवं साॅ स्कैल्ड वाईपर ही जहरीले हैं । परंतु जानकरी के अभाव में सभी सांपों को लोग मार देते हैं । यद्यपि सांपों के मारने पर भारतीय दंड संहिता में दंड का प्रावधान हैं । उन्होंने अबतक सैकडो जहरीले सांपों को पकड़ा है तथा उसे जंगलों में छोड़ा है ।
उन्होंने कहा कि वे अपनी आजीविका के लिए चुल्हा ठीक करने की एक छोटी-सी दुकान चलाते हैं । उनके पास इतना पैसा नहीं है कि सांप पकड़नेवाले सामानों को खरीद सकें । कुछ साल पहले मध्यप्रदेश की एक संस्थान ने उन्हें सांप पकड़ने का सामान देने की बात कही थी, परंतु वह भी नहीं दिया । स्थानीय लोग, जनप्रतिनिधि बड़ी-बड़ी बातें तो करते हैं, परंतु वेलोग भी वादा करके भूल जाते हैं ।
कुल मिलाकर विपीन बिहारी के इस जिंदगी के मकसद को जीवित रखने के लिए आमलोगों को भी आगे आना होगा, ताकि वे इस नेक काम को कर सकें । उनके साथ जिस प्रकार पिछले वर्श सांप ने डसा था, वे बच गए, यही बहुत बड़ी बात थी । ये गरीब परिवार से आते हैं, इसके लिए वनविभाग को भी आगे आने की जरूरत है तथा इन्हें अपनी ओर से प्रोत्साहित करने चाहिए, ताकि इनके जिंदगी का मकसद प्रभावित नहीं हो सके । देखें इनकी सहायता के लिए कौन आगे आता है ।