पूर्णिया, अभय कुमार सिंह: भारतीय गणराज्य के सर्वाधिक लोकआस्था के पर्वों में से एक छठ यानि सूर्योपासना का महापर्व है। उक्त बातें खगडिया की कई पुरस्कारों से नवाजी गईं प्रसिद्ध लेखिका डॉ स्वराक्षी स्वरा ने कही। उन्होंने छठी मईमा की महिमा का बखान करते हुए एवं इनके नाम पर गायकों एवं फूहडपन पर भी चिंता व्यक्त की। साथ ही पर्यावरण का भी बचाव करते हुए पटाखों का कम-से-कम इश्तेमाल की अपील दी। उन्होंने कहा कि भारतीय गणराज्य के सर्वाधिक लोक आस्था के पर्वों में से एक छठ यानि सूर्योपासना का पर्व है। यह चार दिवसीय पर्व में पहला दिन कदुआ-भात, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्ध्य एवं चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है। यही एक ऐसा पर्व है जिसमें ना सिर्फ उगते हुए सूर्य की, बल्कि डूबते हुए सूर्य को भी अर्ध्य देकर सूर्य की उपासना भी करना सिखाता है। इस पर्व में पूरी निष्ठां से पूरे बिहार, यूपी में मनाया जाता है। केरल आदि राज्यों में ओनम भी इसी पर्व का प्रतिरूप है। महान लोकगायिका शरादा सिंहा व अनेक गायकों ने अपने मधुर गान से इस पर्व के सम्मान में बहुत ही वृद्धि की है। कहा जाता है कि त्रेता युग में यह पर्व भगवान श्रीराम ने सरयू तट पर किया था। माता अंजना को भी सूर्य की आराधना से ही महाबलि हनुमान जैसे पुत्र रूप में प्राप्ति हुई थी।
माता कुंती ने भी महारथी कर्ण जैसा स्वस्थ्य, सबल पुत्र सूर्य की अर्चना एवं उपासना से ही पायी थी। भगवान श्रीकृष्ण की लाडली बहन सुभद्रा ने भी यह पर्व किया था तथा उन्हें भी अभिमन्यु जैसा वीर पुत्र की प्राप्ति हुई थी। वैसे भी वैज्ञानिक अनुसंधान भी यह पुष्टि करते हैं कि सूर्य की रोशनी से बीटामीन डी की कमी दूर होती है। कुष्ठ जैसे रोग भी सूर्य के प्रकाश के प्रभाव से दूर होते हैं। इतिहास में कतिपय उदाहरण हैं कि कुष्ठ के निदान के लिए लोग सूर्य की उपासना करते हैं। यह पर्व यूं तो पोखर, झील, नदी आदि के किनारे करते हैं। परंतु अब कतिपय कारणों से छठव्रती घर में ही छोटा पोखर बनाकर सूर्य को अर्ध्य देने लगे हैं, जबकि आस्था में थोडा भी फर्क नहीं पडता है। इस पर्व की महत्ता यही है कि सात समंदर पार से भी लोग यह पर्व करने घर आते हैं। केंद्र सरकार प्रतिवर्ष इस समय स्पेशल ट्रेनें चलाती हैं। यह बिहार एवं उत्तर प्रदेश का सबसे बडा पर्व है। इस दौरान उन्होंने सभी से अपील की कि पटाखे एवं प्रदूषण फैलाने के वस्तुओं से परहेज करना चाहिए। साथ ही उन्होंने वेसे गीतकारों, गायकों से भी अनुरोध किया कि वे अपनी फूहडता से भरे शब्दों पर लगाम लगाएं, लोकपर्व की महत्ता को अपनी थोडी-सी प्रसिद्धि हेतु मलिन न होने दें। उन्होंने सभी लोगों को इस महापर्व पर बधाई एवं हार्दिक अभिनंदन दिया।