महज एक सप्ताह में मक्के की दर सात सौ रूपये प्रति क्विंटल नीचे आया, और कीमत गिरने की ओर अग्रसर
पूर्णिया, अभय कुमार सिंह: कहते हैं किसानों को देखने वाला इस देश में कोई नहीं है। किसानों का शोषण सबसे ज्यादा यहां के पूजिपति व्यवसायी करते हैं तथा एक साजिश के तहत किसानों की फसल जैसे ही तैयार होती है, वे उनकी फसलों का मनमाना कीमत लगाने से नहीं चूकते हैं। जबकि इसओर से सरकार हमेशा ही उदासीन बनी रहती है। लगभग एक माह पहले तक किसानों द्वारा उपजाए गए आलू का क्या हश्र हुआ वह किसी से छूपी नहीं है। ठीक इसी तरह लगभग एक सप्ताह पहले यहां मक्के की कीमत प्रति किक्वंटल 25 सौ रूपये थी, परंतु महज एक सप्ताह में इसकी कीमत सात सौ रूपये गिर गई। इसमें और गिरावट होने के आसार हैं। किसान हाहाकार कर उठे हैं।
किसानों के पास कोई चारा नहीं बचने के कारण यहां के पूंजिपति उनके मक्के की मनमाना कीमत लगाते हैं। किसानों की मक्का की फसल अगर दो हजार से नीचे बिक रही है तो सीधा इसमें किसानों के लिए घाटा का सौदा हो रहा है। जिस प्रकार किसानों के उपयोग में आनेवाली हर जीजों की कीमतें आसमान छू रही हैं, वैसी परिस्थिति में किसानों को अन्न उपजाने में काफी लागत आ रही है। यहां के किसानों ने सरकार से मक्का की खरीद पैक्स के माध्यम या फिर इसका समर्थन मूल्य की घोषणा की मांग की है, ताकि किसानों का शोषण रूक सके।