सहरसा/अजय कुमार : बट सावित्री पर्व को लेकर गुरुवार के सुबह से ही सुहागन महिलाएं वटवृक्ष की पूजा अर्चना में दिन भर जुटी रही। नवविवाहिता एवं सुहागन महिलाओं का झुंड दिनभर शहरी क्षेत्र के विभिन्न जगहों पर लगे विशाल बरगद के पेड़ के पास पहुंच विधि विधान के साथ पूजा अर्चना कर अपने अपने पति की दीर्घायु की कामना की।
नव वस्त्रों में सजधज कर महिलाएं पूरे दिन रात व्रत रख अपने पति की दीर्घायु के लिये पूजा अर्चना की।सुहागन स्त्रियां 16 श्रृंगार करके बरगद के पेड़ की पूजा कर धागा लपेट फेरे लेकर अपने पति के दीर्घायु की प्रार्थना की।साथ ही परिवार के सभी सदस्य निरोगी एवं ऐश्वर्य बना रहे की कामना की। प्यार, श्रद्धा एवं समर्पण का यह पर्व सच्चे व पवित्र प्रेम की कहानी है।
पंडित कामेश्वर झा,रविंद्र झा एवं पंडित शिवम कुमार ने बताया कि वट-वृक्ष की आयु काफी लंबी होती है। इसलिए महिलाए वट सावित्री व्रत पूजन कर अपने पति की दीर्घायु होने का वरदान मांगती है।उन्होंने कहा कि जिस घर में नारी की पूजा की जाती है वहीं देवता निवास करते हैं। वहीं नारी भी अपने पति को परमेश्वर मानकर उनके मंगल कामना एवं दीर्घायु होने की कामना के लिए उपवास व्रत एवं कठिन अनुष्ठान करती है। खासकर हिंदुओं के सभी पूजा पाठ में प्रकृति की विशेष पूजा अर्चना करने की परंपरा प्रारंभ से ही रही है।
उन्होंने कहा कि पौराणिक मान्यता है कि वट-वृक्ष की पूजा करने से पति को दीर्घायु होने की कामना पूर्ण होती है। वही अखंड सौभाग्यवती होने का भी वरदान प्राप्त होता है. धार्मिक मान्यता है कि सावित्री ने भी इस पर्व के सहारे अपने पति सत्यवान को दीर्घायु होने का वरदान दिलाया एवं अपने पति के प्राणों को मृत्यु के देवता यमराज से मुक्ति दिलाई। महिलाए वट सावित्री पर्व के अवसर पर पुरे मनोयोग से वट वृक्ष की पूजा करती है।
सभी सुहागिन महिलाएं वट सावित्री के दिन अपने पति के दिर्घायु व सदा सुहागन रहने को लेकर व्रत करती हैं।लेकिन वट सावित्री नवविवाहिता के द्वारा धुमधाम से मनाया जाता है। जिसमें सावित्री सत्यवान की कथा सुनकर वट-वृक्ष को बांस के बने पंखा से हवा दी जाती है। जिसके बाद चना, मूंग, आम, लीची का प्रसाद भी चढ़ाया जाता है। वट वृक्ष के फेरे लेते हुए कलई बांधती है।
साथ ही अहिबाती महिलाओं को तेल, सिन्दूर भी उपहार स्वरूप दी जाती है।ज्ञात हो कि आज पुरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को देखकर पर्यावरण संरक्षण का रोना रो रहे है।वही सनातन धर्म नें सृष्टिकाल के सृजन से ही प्रकृति पूजा की परम्परा का निर्वहन चलता आ रहा है।जिसके कारण वृक्ष पेड पौधे की पूजन को धार्मिक व्रत-उपवास के साथ मनाया जाता है।