पूर्णिया: जन्म के साथ ही गंभीर बीमारियों से ग्रसित बच्चों को बेहतर इलाज के लिए राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल (जीएमसीएच) में संचालित सिक न्यूबोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में एडमिट कराया जाता है। गंभीर नवजात शिशु को जन्म के बाद से एसएनसीयू में उपचार के दौरान आसानी से सांस लेने के लिए निरंतर निष्क्रिय वायुमार्ग दबाव (सीपैप-CPAP) मशीन का उपयोग किया जाता है। बच्चों को सिपैप मशीन का बेहतर उपयोग करते हुए ज्यादा से ज्यादा गंभीर रूप से बीमार बच्चों को सुरक्षित करने के लिए राज्य स्वास्थ्य समिति एवं यूनिसेफ बिहार पटना, बिहार के संयुक्त समन्वय द्वारा राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल (जीएमसीएच) पूर्णिया में कार्यरत सभी चिकित्सा पदाधिकारी, शिशु रोग विशेषज्ञ एवं एसएनसीयू पूर्णिया में कार्यरत सभी अधिकारियों, नर्स और सहयोगी कर्मियों को प्रशिक्षित करने के लिए एकदिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। जीएमसीएच अधीक्षक डॉ संजय कुमार की अध्यक्षता में आयोजित एकदिवसीय कार्यशाला में जीएमसीएच शिशु विभाग के हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ प्रेम प्रकाश, एम्स पटना के न्यूनेटोलॉजिस्ट डॉ सौरभ कुमार एवं यूनिसेफ के डॉ तारिक द्वारा उपस्थित सभी लोगों को गंभीर नवजात शिशुओं के इलाज के लिए सिपैप मशीन के बेहतर उपयोग की आवश्यक जानकारी दी गई। इस दौरान राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल (जीएमसीएच) के प्रिंसिपल डॉ गौरीकान्त झा, अस्पताल अधीक्षक डॉ संजय कुमार, महिला स्वास्थ्य विभाग की हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ ऋचा झा, हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ ए के झा, शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ राजेश कुमार भारती, यूनिसेफ जिला सलाहकार शिवशेखर आनंद के साथ एसएनसीयू में कार्यरत सभी स्टाफ नर्स, वरीय और निम्न वर्गीय अधिकारी उपस्थित रहे।
सीपैप मशीन द्वारा बीमार नवजात शिशुओं के मैनेजमेंट की दी गयी जानकारी :
प्रशिक्षण में एम्स पटना के न्यूनेटोलॉजिस्ट डॉ सौरभ कुमार द्वारा कमजोर बच्चों, समय से पूर्व जन्मे बच्चों एवं गंभीर रूप से बीमार नवजात शिशुओं के बेहतर देखभाल के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला मशीन सिपैप के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी दी गई। उन्होंने बताया कि जन्म के बाद से ही बच्चों को सांस लेने में होने वाले समस्या के लिए उन्हें तत्काल ऑक्सीजन नहीं देना चाहिए। नवजात शिशु को बेहतर सांस उपलब्ध कराने के लिए सिपैप मशीन का सही तरीके से उपयोग किया जाता है। एसएनसीयू में एडमिट बच्चों को सही समय में सिपैप मशीन द्वारा सांस उपलब्ध कराने से नवजात शिशुओं को तत्काल रेफरल करने एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने में आवश्यक कमी लाई जा सकती है। इसके लिए एसएनसीयू में कार्यरत सभी चिकित्सक एवं पैरामेडिकल स्टाफ को सिपैप मशीन के उपयोग करने की जानकारी होना आवश्यक है। इसका सभी अधिकारियों व कर्मियों द्वारा सही उपयोग करने से नवजात शिशुओं को बेहतर चिकित्सा उपलब्ध कराते हुए ज्यादा से ज्यादा बच्चों को स्वस्थ और सुरक्षित किया जा सकता है।
प्रति 1000 नवजात शिशुओं में 16 बच्चों की प्रथम 07 दिनों में हो जाती है मृत्यु :
जीएमसीएच शिशु विभाग के हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ प्रेम प्रकाश ने बताया कि सही समय पर सही तरीके से बेहतर चिकित्सकीय सहायता नहीं उपलब्ध होने के कारण प्रति 1000 नवजात शिशुओं में 16 बच्चों की मृत्यु प्रथम 07 दिनों में जबकि 21 बच्चों की मृत्यु जन्म के बाद 28 दिनों के अंदर हो जाती है। जन्म के बाद से गंभीर बीमारी की अवस्था में नवजात शिशुओं को नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई (एसएनसीयू) में भर्ती किया जाता है। गंभीर बीमारी के रूप में नवजात शिशु को सांस लेने में कठिनाई, सेप्सिस, निमोनिया, जोंडिस, ब्लड इंफेक्शन, जन्म के बाद ऑक्सीजन लेवल कम रहने, सामान्य तापमान में रहने वाले बच्चों को जन्म के बाद ही एसएनसीयू में भर्ती कराते हुए आवश्यक चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है। यहां पर समुचित इलाज उपलब्ध होने पर नवजात शिशु को सामान्य करते हुए उन्हें स्वास्थ्य एवं सुरक्षित किया जाता है। इसलिए एसएनसीयू में कार्यरत सभी अधिकारियों को बच्चों के आवश्यक इलाज के लिए सिपैप के उपयोग की आवश्यक जानकारी अवश्य रहनी चाहिए ताकि सभी भर्ती बच्चों को बेहतर उपचार करते हुए उन्हें सुरक्षित और स्वस्थ किया जा सके।