पूर्णिया: PURNIA NEWS 25 अगस्त 1942 को रूपौली में ‘करो या मरो’ आंदोलन के दौरान चार युवक – बंगाली सहनी, पांचू बैठा, सुखदेव भगत और जागेश्वर सहनी – शहीद हुए थे। 82 वर्ष बीत जाने के बाद भी इन शहीदों के परिवारों की स्थिति दयनीय बनी हुई है। शहीदों के वंशज गरीबी और उपेक्षा का सामना कर रहे हैं। उन्हें किसी भी सरकारी कार्यक्रम या स्वतंत्रता दिवस समारोह में आमंत्रित नहीं किया जाता। अधिकांश परिवार मजदूरी करके गुजारा करते हैं और आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं।
सहनी टोला के युवाओं ने स्वयं शहीद बंगाली सहनी का स्मारक बनाना शुरू किया है। शहीद सुखदेव भगत के परिवार को कोई सरकारी लाभ नहीं मिला। पांचू बैठा के वंशजों में से दो को शिक्षक की नौकरी मिली, लेकिन अन्य सदस्य अभी भी संघर्ष कर रहे हैं। जागेश्वर सहनी के परिवार का पता ही नहीं है। स्थानीय लोगों का कहना है कि राजनेताओं और अधिकारियों ने कभी इन परिवारों की सुध नहीं ली। शहीदों के त्याग और बलिदान के बावजूद उनके परिवारों को समाज और सरकार द्वारा भुला दिया गया है।
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