पूर्णिया, अभय कुमार सिंह: PURNIA NEWS जन्माष्टमी के दिन जन्म लिए यहां के पूर्व विधायक शालिग्राम सिंह तोमर की जन्माष्ठमी के दिन 83वीं जयंती सादगी एवं श्रद्धा के बीच मनायी गयी। इसका शुभारंभ उनके झलारी गांव स्थित समाधि पर फूलमाला चढाकर किया गया। इसमें मुख्य अतिथि के रूप में उनकी पत्नी षांति देवी एवं सीओ शिवानी सुरभि उपस्थित थीं। सभी ने उनकी समाधि पर फूलमाला चढाकर उन्हें नमन किया तथा श्रद्धांजलि अर्पित की। गौरतलब है कि रूपौली का विधायक कैसा हो, शालिग्राम सिंह तोमर जैसा हो , यह नारा आज 44 वर्ष बाद भी यहां के जनमानस में रह-रहकर उठ ही जाता है। स्व तोमर ने अपने, अपने परिवार से ज्यादा मान-सम्मान यहां की जनता को दिया था, तथा इसी वजह से गरीबी से जूझते हुए तथा गरीबों के लिए संघर्ष करते हुए, वे यहां के विधायक बने थे। उनका नाम आज भी लोगों के दिलों में सम्मान के साथ बसता है। स्व तोमर का जन्म 15 अगस्त 1940 को झलारी गांव के पिता सत्यदेव सिंह एवं माता कौशल्या देवी के केाख से हुआ था। यह बता दें कि शालिग्राम सिंह तोमर बचपन से ही संघर्षशील व्यक्ति थे।
रूपौली हाई स्कूल से लेकर पूर्णिया काॅलेज की शिक्षा हो या वकालत, या रिक्सावाले के लिए लडाई लडनी हेा, उनकी आवाज उठती रही। लोकनायक जयप्रकाश नारायण की संपूर्णक्रांति ने तो उनमें एक ऐसा जोश भर दिया था कि उन्हें आपातकाल के दौरान मीसा में जेल में डाला गया तथा यातनाएं भी दी गई थीं। उसी समय 1977 में हुए जनता पार्टी के विधानसभा चुनाव में इनको रूपौली विधानसभा का नेतृत्व करने का मौका मिला था। उनके बडे भाई तथा बुजूर्ग समाज के संरक्षक भोलानाथ आलोक थे। इस संबंध में यहां के लोग बताते हैं कि वे काफी अनुभवी एवं क्रांतिकारी मिजाज के थे। बचपन से ही तेज इतनी थी कि वह किसी समस्या से घबडाता नहीं था, बल्कि वह डटकर सामना करता था। वह पत्रकार भी था, उसने कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन के साथ-साथ उन्होंने वकालत भी की थी। वे रिक्सा चालक संघ के भी अध्यक्ष हुआ करते थे। यूं कहना गलत नहीं होगा कि वे गरीबों के लिए कुछ भी कर-गुजरने के लिए तैयार रहते थे। कुछ इसी का प्रतिफल रहा था कि वे विधायक बने थे तथा आज भी लोगों को ऐसा कहते सुना जा सकता है कि विधायक हो तो तोमर जैसा। आजतक जितने भी विधायक हुए, उनके जैसा गरीबों का हमदर्द कोई नहीं हुए। ब्राहमण से लेकर अनुसूचित जाति, जनजाति, अल्पसंख्यक तक, सभी उनकी निगाहों में एक समान थे। उन्हीं के प्रयास से 1978 में रूपौली से टीकापटी घाट तक जो रूपौली का हर्ट लाईन था, सडक का निर्माण हुआ था, जिसे विकास का नींव कहा जाता है। वे अभी और कुछ करनेवाले ही थे कि उन्हें असाध्य रोग कैंसर ने जकड लिया।
पूरा क्षेत्र इस खबर से मर्माहित हो चूका था। सभी लोग भगवान से यही प्रार्थना कर रहे थे कि वे स्वस्थ्य हो जाएं, परंतु भगवान को कुछ और मंजूर था तथा वे अल्पायु 39 वर्ष की उम्र में ही 14 फरवरी 1980 को चिर-निंद्रा में लोगों को रोता-विलखता छोड सो गए। विधानसभा क्षेत्र का बच्चा-बच्चा उनके निधन पर रोया था। चार भाईयों एवं एक बहन में सरयुग प्रसाद सिंह, भोलानाथ आलोक, नारायण सिंह, भानुप्रभा देवी, शालिग्राम सिंह तोमर सबसे छोटे थे तथा सबके दुलारे थे। उनके बडे भाई भोलानाथ आलोक भी किसी के परिचय के मुहताज नहीं थे। उनके निधन के बाद उनकी पत्नी शांति देवी पर दुखों का पहाड टूट पडा था। वह अपने दो छोटे-छोटे बेटों मंटू एवं प्रवेश को कलेजे से लगाए किसी प्रकार उनका लालन-पालन किया। आज उनके ही नाम से यहां शालिग्राम सिंह तोमर विद्यापीठ चल रहा है, जहां सैकडो की संख्या में बच्चे अपना उज्ज्वल भविष्य बनाने में लगे हैं। इस अवसर पर तोमर विद्यापीठ के बच्चों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया तथा सबका मन मोहा। सीओ शिवानी सुरभि ने कहा कि ऐसे महान लोगों की श्रद्धांजलि में उपस्थित होना उनके लिए गर्व की बात है। इस अवसर पर पत्नी शांति देवी, पुत्र किशोर सिंह, मंटू सिंह, प्रवेश सिंह तोमर, राजीव सिंह, पुत्रवधु नीतू सिंह, खुशबू रानी, पौत्र ऋषभ सिंह, रिया सिंह, मीमांशा सिंह आदि ने भी उनके चित्र पर फूलमाला चढाकर श्रद्धांजलि अर्पित की।
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