पूर्णिया, अभय कुमार सिंह: PURNIA NEWS अंग्रेजी सीखाने के चक्कर में अभिभावक अपने बच्चों को मानसिक रूप से बीमार करते चले जा रहे हैं, इसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं तथा इसका खामियाजा भी अभिभावक भुगतने लगे हैं। दुधमुंहें बच्चों की पीठ पर शरीर की वजन से ज्यादा बडे-बडे बैग, एक नजर देखने से ही लगता है कि अभिभावक स्वयं अपने बच्चों के साथ अन्याय करने लगे हैं। जबकि अभी जिस प्रकार एक-से-एक शिक्षक सरकारी विद्यालयों में नियुक्त हुए हैं, अभिभावक थोडा प्रयास एवं सहयोग करें, तो सरकारी विद्यालय बेहतर शिक्षा प्रदान कर सकता है, जिससे खासकर निम्न आयवर्ग के लोगों को बडी राहत मिल सकती है। यह बता दें कि अभी हर गांव के जो थोडा भी सक्षम अभिभावक हैं, वे अपने बच्चों को अंग्रेजी सीखाने के चक्कर में प्रायः प्राइवेट विद्यालयों में नामांकन कराने से नहीं चूक रहे हैं। सरकारी विद्यालय का नाम सुनकर ही उनके नाक-भौं सिकुडने लगते हैं। जबकि प्राइवेट विद्यालय में पढनेवाले बच्चों की पीठपर लदे बडे-बडे बैग को देखकर ही लगेगा कि अभिभावक अपने बच्चों के साथ कितना अन्याय कर रहे हैं।
थोडी उम्र होती नहीं है कि वे बच्चे को अपने से जुदा करने लगते हैं, जिसका कुपरिणाम सामने आने लगता है। स्वाभाविक रूप से बच्चे सामान्य उम्र तक अपने माता-पिता के पास रहना चाहते हैं। इस परिस्थिति में उन्हें किसी प्राइवेट विद्यालय के हाॅस्टल में रखने या पढाने से उनपर बुरा असर पड रहा है। जबकि सच्चाई यह है कि सरकारी विद्यालयों में शिक्षा की उपेक्षा के कारण, यही अभिभावक ही हैं। जिनके अभिभावक जागरूक हैं तथा अपने बच्चे को सरकारी विद्यालयों में पढा रहे हैं, उनके बच्चे किसी भी प्राइवेट विद्यालय में पढनेवाले बच्चों से कम नहीं हैं। अभिभावक जिस प्रकार प्राइवेट शिक्षक को अहमियत देते हैं, अगर वे सरकारी विद्यालय के शिक्षको को देने लगेंगे, शिक्षा में स्वतः सुधार होता चला जाएगा। कुल मिलाकर अभिभावकों को भले ही लग रहा है कि प्राइवेट विद्यालय के शिक्षक बेहतर शिक्षा दे सकते हैं, परंतु वे अपने बच्चों से स्नेह का भी समझौता कर रहे हैं। आज जरूरत है कि जिस प्रकार सभी अभिभावक प्राइवेट विद्यालयों के प्रति समर्पित हैं, वे अपने गांव के विद्यालयों पर ध्यान दें तथा उसे ही सजाने-संवारने का काम करें, तो निश्चित ही एक नया भविष्य बनने से कोई रोक नहीं सकता है।
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