सहरसा, अजय कुमार : SAHARSA LATEST NEWS स्थानीय सुपर मार्केट स्थित प्रमंडलीय पुस्तकालय में रविवार को साहित्यकार कुमार विक्रमादित्य द्वारा सृजित मैथिली की आजतक की सबसे लम्बी दीर्घ कविता “धुन्ध’ पर परिचर्चा संपन्न हुई।मुख्य अतिथि साहित्यकार व प्रोफेसर डॉक्टर कमल मोहन चुन्नू, भाषा वैज्ञानिक व साहित्यकार राम चैतन्य धीरज, विशिष्ट अतिथि डीसीएलआर ललित कुमार सिंह,साहित्यकार व प्रधानाध्यापक शैलेन्द्र शैली, साहित्यकार व प्रोफेसर अरुण कुमार सिंह, साहित्यकार मुख्तार आलम, साहित्यकार व प्रोफेसर अक्षय कुमार चौधरी, प्रोफेसर किशोर कुमार झा, प्रोफेसर व कवि साहित्यकार अरविन्द मिश्र नीरज ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की। कार्यक्रम में धुन्ध पोथी के विभिन्न आयामों पर वक्ताओं ने अपनी राय रखी। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कमल मोहन चुन्नू ने कहा कि कुमार विक्रमादित्य की यह पुस्तक दीर्घ कविता के सभी आयाम को पूरा करता है। कवि ने धैर्य का परिचय देते हुए इस सम्पूर्ण कविता के प्रवाह को बनाए रखा है जो इस कविता को दीर्घ सामयिक बना दिया है।उन्होंने कहा कि मैथिली में दीर्घ कविता लिखने की परंपरा रही तो है पर बहुत ही कम दीर्घ कविता लिखी गयी है। कुमार विक्रमादित्य की दीर्घ कविता उस कमी को न केवल पूरा करता है बल्कि नए मानक पर खड़ा उतरने के लिए प्रयासरत है।अपने अध्यक्षीय संबोधन में राम चैतन्य धीरज ने कविता के कई बारीकियों को रखते हुए कविता के विभिन्न विशेषताओं को रेखांकित किया।
शैलेन्द्र शैली ने अपने संबोधन में कविता के विभिन्न कसौटी पर धुन्ध को कसने का प्रयास करते हुए इस कविता की सराहना की। उन्होंने बताया कि दीर्घ कविता बहुत धैर्य और समय की मांग करता है।उन्होंने कवि के इस कार्य को असाधारण कहा। उन्होंने कहा कि इस तरह की कवितायें लिखने के लिए धैर्य और समय की आवश्यकता है।विशिष्ट अतिथि ललित कुमार सिंह ने कहा कि एक कविता वो भी छियानवे पृष्ठ की अपने आप में इसकी उदारता को परिभाषित करता है।कवि अरविन्द मिश्र नीरज ने कविता के उदार पक्ष का वर्णन करते कहा कि आधुनिक समय में समाज में जो धुन्ध पसरा हुआ है।कवि के इस सोच से वह जरूर छंटेगा ऐसा मुझे विश्वास है।प्रोफेसर अक्षय कुमार चौधरी ने कहा कि यह दीर्घ कविता, कविता के महासमुद्र में सदा खिलखिलाता रहेगा।कविता का शिल्प, शब्द विन्यास अपने आप में अलग है।जो इसे बाकी कविता से अलग करता है। युवा साहित्यकार मुख्तार आलम ने कहा कि यह कविता अभी तक की लिखी गयी दीर्घ कविता से बिलकुल अलग है जो इसकी विशेष पहचान है।सभी अंतरा आगे की अंतरा से मेल खाती हुई आगे बढ़ती चली जाती है।एक बार बैठने पर पूरा पढने का मन बना रहता है।मंच संचलान साहित्यकार रणविजय राज ने किया। इस परिचर्चा में दूर दराज से कई लोग आये हुए थे और अंत तक उनकी उपस्थिति यह बताने के लिए काफी थी कि अच्छे साहित्य की अभी भी क़द्र है। मौके पर आनंद झा मुरादपुरी, दिलीप झा दर्दी, पारस कुमार झा, सुमन समाज, रघुवंश झा, अवधेश झा अवध, मनोज कुमार,आदित्यनाथ झा, मनोज कुमार, आलोक कुमार, मनोज कुमार सिंह, दिलीप कुमार चौधरी, भोगी लाल, विकास कुमार, दिव्यांशु प्रियम झा, प्रत्यूष प्रीतम झा, फ़िरदौश आलम, मोहम्मद आदिल, ललन झा सहित अन्य उपस्थित रहे।
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