सहरसा, अजय कुमार: SAHARSA LATEST NEWS साहित्यिक,सामाजिक आ सांस्कृतिक संस्था मैथिली शब्द लोक के तत्वावधान में प्रमंडलीय पुस्तकालय सहरसा में ललन झा रचित दो कविता संग्रह मैथिली में ‘सुन भेल गाम’ एवं हिन्दी में ‘उनकी याद मे’ का लोकार्पण एवं परिचर्चा कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध भाषाविचारक डा. राम चैतन्य धीरज, मुख्य अतिथि सहरसा नगर निगम की महापौर श्रीमती बैन प्रिया मैथिली के कवि अरविन्द मिश्र ‘नीरज, समाजशास्त्र के सहायक प्रोफेसर डा. अक्षय कुमार चौधरी, सर्वनारायण सिंह रामकुमार सिंह महाविद्यालय में हिन्दी के सहायक प्रोफेसर डा. धर्मव्रत चौधरी, पी. जी. सेंटर,हिन्दी विभाग ,सहरसा के सहायक प्रोफेसर डा. श्रीमंत जैनेन्द्र, साहित्यकार विवेकानंद झा, प्रमंडलीय पुस्तकालय के प्रशासकीय निदेशक मुक्तेश्वर प्रसाद सिंह मुकेश, साहित्यकार रणविजय राज, आनंद झा, दिलीप कुमार दर्दी एवं मंच संचालक साहित्यकार मुख्तार आलम और विभिन्न गावों से आये हुए साहित्यानुरागी व वरिष्ठ नागरिकों ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया।
इस अवसर पर डा. राम चैतन्य धीरज ने मेरी समझ से दर्शन के बिना साहित्य में भटकाव आ जाता है।विश्व स्तर पर संघर्ष के इतिहास का साहित्य पर व्यापक असर पड़ा और इसके अग्रणी दार्शनिक कार्ल मार्क्स हुए। शांति के पक्ष में वेदांत का भी व्यापक असर पड़ा।महात्मा गाँधी का संघर्ष भी सत्य अहिंसा आधारित जन मुक्ति का था । दोनो महापुरुष के संघर्ष का प्रभाव साहित्यिक आन्दोलन पर पडा जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है। ललन जी की कविता मे आत्म संघर्ष का व्यापक प्रभाव है।समाज और इसके बिखरते स्वरूप तथा संवेदनहीन होते सामाजिक व्यवस्था पर इन्होंने करारा प्रहार करते बहुत ही महत्वपूर्ण रूप से संघर्ष को आयाम दिया है।ललन झा की कविता बदलते समय व्यवस्था का मार्मिक दस्तावेज है।मुख्य अतिथि सहरसा की महापौर बैन प्रिया ने कवि ललन को सहरसा के पुर्व विधायक दिवंगत संजीव झा द्वारा यहां के दलित व पिछड़े वर्ग के हित में तन, मन व लगन से काम करने, जनसरोकार की समस्याओं को लेकर सत्तापक्ष के विरूद्ध सदा मुट्ठी बांध कर आंदोलन हेतु खड़ा रहने, और सभी जाति और समुदाय के लोगों के बीच सद्भावना एवं सौहार्द के लिए काम करने के विषय वस्तु पर लिखी कविता हेतु हार्दिक धन्यवाद दिया। उन्होंने ललन जी के काव्य कर्म की सराहना करते हुए नई पीढ़ी के लिए प्रेरक बताया।कविजी नीरज ने कहा कि ललन की कविताएं ग्राम जीवन की समस्याओं का मौलिक विवरण प्रस्तुत करती है।
यदि वे इनके समाधान पक्ष को भी अपने लेखन में समायोजित करते तो कविताओं की प्रासांगिकता और भी विलक्षण हो जाता।साहित्यकार मुक्तेश्वर मुकेश ने कहा कि यद्यपि यह कवि ललन की पहली कृति है परन्तु इसमें संकलित सभी कविताएं काफी गंभीर हैं। समाज की अनेक समस्याओं को उजागर करके उसके समाधान के लिए प्रेरित करती है। अपने व्यस्त जीवन से समय निकालकर समाज और शैक्षिक जगत के लिए लेखन का दायित्व पूरा करना सामान्य बात नहीं है।डा. अक्षय कुमार चौधरी ने कहा कि लेखक समय परिवर्तन की प्रक्रिया के दो कालखंड में गांव के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में हो रहे बदलावों का वर्णन करता है। पहला जब सहरसा एक समग्र जिला हुआ करता जहां संयुक्त परिवार की विशेषताओं वाले बड़े बड़े गांव थे और दूसरा सहरसा जब तीन जिलों में बॅंट गया जहां लोग गांवों से पलायन कर शहरों में बसते गये हैं। परिवर्तन केवल प्रवास तक ही सीमित नहीं है बल्कि नगरीकरण के तत्वों के प्रभाव में व्यक्तिवाद और एकाकी परिवार की प्राथमिकता, ग्राम-ंनगरीकरण के मानसिक संस्तरीकरण मे गांवों को निम्न समझने की प्रवृत्ति, बुढ़े-बुजुर्गों का अपने संतति से विलग एकाकीपन का जीवन, दहेज हत्यायें एवं प्रताड़ना इत्यादि दुर्गुणों का भी प्रवेश हो गया है।
जिसकी चिंता और विमर्श ललन की कविताओं में देखने को मिलती है। डा. धर्मव्रत चौधरी ने कहा कि ललन झा की कई कविताएं अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर विमर्श है जिस अन्तर्देशीय युद्ध के संपूर्ण विश्व समुदाय पर पड़ने वाले दुष्परिणामों को रेखांकित करती है। डॉ. जैनेन्द्र ने कहा कि ललनजी की कविता संग्रह ललन झा की कविता में विविधता है। एक ऐसे समय में जब कोई कवि समय के कठिन यथार्थ को कहने से बचना चाहता है वैसे समय में ललन जी बेबाकी से अपनी बात कहते हैं। हालाँकि कवि अपनी पत्नी की याद में कविता करना शुरू करता है लेकिन जल्द ही उनका कवि कर्म अपने सामाजिक दायित्व के प्रति भी सजग हो उठता है। यह संग्रह अपनी मौलिकता के लिए भारत के मूर्धन्य हिन्दी के साहित्यकारों की रचनाओं के समकक्ष है। विवेकानंद झा ने समाज में लड़कियों की घटती संख्या के कारण लड़कों के विवाह में हो रही समस्या और बड़ी संख्या में बूढ़े होते वरों पर अपनी कविता में चिंता व्यक्त करने हेतु कवि ललन की काफी सराहना की। साहित्यकार रणविजय राज ने कहा कि कवि ललन सच्चे अर्थों में एक कम्युनिस्ट और जनवादी कवि हैं। और जनसरोकार के मुद्दों को लेकर वह सड़क पर काम करने वाले जननेता भी हैं।
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