पूर्णिया : नाट्य विभाग, कला-भवन, पूर्णिया एवं रेणु रंगमंच संस्थान,पूर्णिया के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय एकल नाट्य महोत्सव में प्रस्तुत, दूसरे दिन की तीसरी प्रस्तुति, पूर्णिया के ररंगलीला क्रिएशन के माध्यम से लेखक, निर्देशक व अभिनेता गोविंदा कुमार उर्फ गोविंद प्रसाद दास के द्वारा की गई । “आंखों की पट्टी खोल रे” के नाम से प्रस्तुत इस एकल प्रस्तुति में, कलाकार ने मानवीय संवेदना और श्रमिकों के पलायन के दर्द को परिभाषित करने की भरसक चेष्टा की है। वर्तमान के समसामयिक मुद्दों पर आघात करते हुए इस एकल प्रस्तुति के कथानक में यह दर्शाया गया है कि, समाज में उपेक्षा का दंश झेलते एक अवसादग्रस्त व्यक्ति की अपनी एक अलग जीवन शैली है, वह औरो से अलग सड़कों पर बेचैन ह़ोकर भटकता हुआ अक्सर दिखता है, मॉल में बिकने वाले वन गेट्स वन ऑफर वाले एक रंग के कपड़े खरीदकर पहनता है और अपने रोजमर्रा के जीवन में समाजिक स्थितियों की समीक्षा के लिए सड़कों की खाख छानते हुए सामाजिक चिंतन करता है । इसलिए लोग उसे पागल समझते हैं, परन्तु वह समाज से भी यह पूछने का साहस रखता है कि, क्या आप मुझे पागल समझते हैं? और फिर खुद भी लोगों के समर्थन में खुद का तिरस्कार करते हुए यह स्वीकार भी कर लेता है कि,हां! मैं पागल हूं… मानवीय संवेदनाओं के पीछे छिपे तथ्यों को जानने के लिए, मैं पागल हूँ ! समाज के शोषित वर्गों की वेदना को दूर करने के लिए । मैं पागल हूं दिन दुनिया में घटित घटनाओं से उत्पन्न भयावा परिस्थितियों को दूर करने के लिए ! लेकिन इतना बेबस हूं कि मैं अकेला यह सब एक साथ नहीं कर सकता हूं । इसलिए चुपचाप सड़कों की खाक छानता हूं और घर लौटकर सो जाता हूं …
लेकिन उसे नींद में भी चैन नहीं मिल पाता है, वह नींद में ही श्रमिकों वेदना और युवाओं के बीच पनपत्ति हुई हताश स्थितियों के बारे में सोचने लगता है, तभी उसके सपने में अनायास कुवैत का वह मजदूर आ जाता है, जो जलकर अभी अभी मारा था । वह अपनी दुखों की दास्तान उस बेचैन व्यक्ति को सुनना चाहता है, लेकिन वह सुन नहीं पता, मगर वह मजदूर भी उसे पूरे अधिकार के साथ जोड़ देता हुआ हुआ कहता है कि, तुम हमारी स्थितियों के प्रति संवेदनशील होने का दम भरते हो और हमारी वेदना में झांकना चाहते हो तो, तुम्हें हमारी बात सुननी ही पड़ेगी l
हमारे साथ खड़ा रहना ही पड़ेगा ! इसी बीच वह व्यक्ति सपने में स्वयं को सामान्य स्थिति में लाने के लिए टीवी पुर आनेवाले समाचार देखने के लिए रिमोट से टीवी ऑन करता है और टीवी पर नेट के एग्जाम की पेपर लीक होने की खबर आ रही होती है l जिससे लाखों छात्रों के जीवन दाव पर लगा चुका है । फिर वह उसी विषय पर सोचने लगता है। लेकिन तभी कुवैत में जलकर मरने वाला एक दूसरा मजदूर,पहले मजदूर की आत्मा का पीछा करता हुआ वहां पहुंचता है और अपनी छटपटाहट को दूर करने वह भी अपनी वेदना को उस व्यक्ति को सुनना चाहता है, दरअसल यहां वह व्यक्ति प्रतीक है समाज के उन तमाम आदमियों का,जो यह दिखाने की कोशिश तो करते हैं कि मैं सामाजिक विकास के लिए पागल हूं, समाजवाद की स्थापना के लिए प्रयासरत हूँ ! लेकिन जब शौषितों की बात सुनने की बारी आती है तो, सुनने से कतराते हैं… और फिर देखते ही देखते मंच पर सामने आती है श्रमिकों व छात्रों के जीवन से जुड़ी हुई ऐसी दास्तां,जो सबको हिला कर रख देती है । वह कहता है कि, रंग-बिरंगे नारे दल के दलों के दलदल गहरे हैं//0उस पर तुर्रा यह है कि हमारे होठों पर सत्ता के पहरे हैं …लेकिन अब समय आ गया है अपनी आंखों की पट्टी को खोलिए और दुनिया में होने वाले भयावह स्थिति व परिस्थितियों के विरुद्ध सुधार के प्रयासों में लग जाइए। नहीं तो एक दिन ऐसा भी आएगा कि हम सभी पलायन कर जाएंगे l आम आदमी के लिए कहीं, कोई जगह नहीं बचेगी । इसलिए अपनी आंखों की पट्टी खोलिए । पूर्णिया में आयोजित यह दो दिवसीय एकल नाट्य महोत्सव बेहद सफल रहा। दो दिनों में कुल आठ प्रस्तुतियां हुई, जिसमें पटना और पूर्णिया के कलाकार शामिल हुए ।