पूर्णिया : पूर्णिया में इस बार काटे की टक्कर चल रही है। इस बार का लोकसभा चुनाव पुरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा है। पूर्णिया जो नेपाल और बंगाल के बॉडर पर बसा है तथा साथ जिलों का यह राजधानी माना जाता है। पूर्णिया ने स्थानीय नागरिकों के बल पर अपने विकास के पायदान को ऊंचा किया है। पटना से 350 किलोमीटर दूर तथा दिल्ली से 1100 सौ किलोमीटर दूर पूर्णिया पर सब की नजर बहुत ही बाद में पड़ती है। पूर्णिया में वर्तमान में एयरपोर्ट का मुद्दा सबसे ज्यादा गर्म है।
एम्स का मामला भी पीछा नहीं छोड़ रहा। पूर्णिया को ऊप राजधानी तथा यहां हाई कोर्ट के बेंच को लेकर लगातार लोगों द्वारा आंदोलन किए जाते रहे हैं ।रेलवे की सुविधाओं के लिए यहां के जागरूक लोग लगातार आंदोलनरत है। एयरपोर्ट की घोषणा होने के बाद भी आठ सालों में उसका नहीं बनना लोगों को काफी तकलीफ दे रहा है। बनमनखी चीनी मिल के बंद होने के बाद जितने भी सांसद बने सभी ने चीनी मिल चालू करने का वादा किया लेकिन किसी ने पूरा नहीं किया और कबाड़ी के भाव में चीनी मिल को बेच दिया गया। इसके लिए भी पूर्णिया लोकसभा के लोगों में काफी गुस्सा है।
पूर्णिया ने बाढ़ का दंश तो झेला ही जातीय लड़ाई ने भी पूर्णिया को काफी पीछे धकेला। अपराधियों का यह गढ़ रहा जिसके कारण नॉर्थ लिब्रेशन आर्मी नामक एक बड़ा ग्रुप भी बना। अवधेश मंडल,पप्पू यादव एवं राजपूतों की लड़ाई उसमें आनंद मोहन का भी शामिल होना पूर्णिया के लिए एक काला अध्याय रहा। यादव राजपूत एवं मंडल की लड़ाई ने पूर्णिया को काफी पीछे धकेला। और यह अपराध का बोलबाला इसलिए बाद की सरकार नमक कोई चीज नहीं थी।
सीएम नीतीश कुमार के आने के बाद सुशासन की घोषणा के बाद बहुत सारे अपराधियों को पुलिस द्वारा एनकाउंटर में मर गया नेता जेल में पड़कर बंद किया गया उसके बाद अपराध के बोलबाला मैं काफी कमी आई। अजीत सरकार हत्याकांड के बाद पप्पू यादव लगातार 14 वर्षो से ज्यादा जेल में बंद रहे। अजीत सरकार के बेटी और दामाद ने एक साक्षात्कार में कहा कि मेरे पिता अजीत सरकार की हत्या हुई उनके साथ-साथ रमेश उरांव, हरेंद्र ततमा तथा अफाकुर रहमान की भी हत्या हो गई परंतु किसी परिवार को कोई न्याय नहीं मिल सका।
पूर्णिया में जातीय समीकरण हमेशा चुनावों में हावी रही है। यादव मुस्लिम समीकरण का यहां दबदबा है। पूर्णिया से तीन बार पप्पू यादव सांसद रह चुके हैं। उदय सिंह पप्पू सिंह 2004 2009 में भाजपा की टिकट से सांसद रह चुके हैं। एनडीए गठबंधन से जदयू के टिकट पर संतोष कुशवाहा 2014 तथा 2019 में सांसद रह चुके हैं।
इस बार भी इनकी चुनावी लड़ाई है। इस सीट को जीतने के लिए मोदी और नीतीश ने तो मेहनत की ही है परंतु बिहार सरकार की मंत्री लेसी सिंह, विधायक कृष्ण कुमार ऋषि,विधायक विजय खेमका के अलावा खुद संतोष कुशवाहा लगातार बड़ी मेहनत करने में लगे हुए हैं। हालाकि एनडीए के शासनकाल में पूर्णिया में बिजली सुधार, सड़कों एवं यूनिवर्सिटी, मेडिकल कॉलेज, इत्यादि भी बने है।
निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पप्पू यादव कड़ी टक्कर दे रहे हैं। पप्पू यादव अपने द्वारा किए गए कामों को लोगों के बीच बता रहे हैं। तो वहीं रुपौली की पूर्व विधायक एवं मंत्री बीमा भारती भी पुरी जी जान से चुनाव में उतरी हुई है। तेजस्वी यादव ने भी लगातार उनके लिए लोगों से जनसंपर्क किया है।
सर्वप्रथम कांग्रेस के फनी गोपाल सेन गुप्ता 1952 से 1967 तक लगातार कांग्रेस की ओर से सांसद रहे। जय कृष्ण मंडल ने भाजपा की ओर से पहली बार 1998 में जीत हासिल की। पिछली बार कांग्रेस से लोकसभा के लिए लड़ने वाले उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र में कुल विधानसभा क्षेत्र 6 है जिसमें पूर्णिया पूर्व ,कसबा ,बनमनखी, रूपौली, धमदाहा तथा कटिहार जिले का कोड़ा विधानसभा आता है। पहले बायसी विधानसभा पूर्णिया लोकसभा में आता था जो अब कटकर किशनगंज लोकसभा में चला गया है।
पूर्णिया लोकसभा पर अगर नजर डालें तो हिंदू वोटरों की संख्या 60 प्रतिशत तथा मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 प्रतिशत है। यहां साढ़े 3 लाख मुस्लिम वोटर तथा पौने दो लाख यादव वोटर है। यहां एक लाख 50 हजार राजपूत वोटर और एक लाख भूमिहार वोटर है। जबकि ब्राह्मण वोटर डेढ़ लाख तथा कायस्थ वोटर 1 लाख के लगभग है। पूर्णिया लोकसभा में एससी एसटी,ओबीसी, बीसी मतदाता लगभग 5 लाख 50 हजार हैं।