राजीव रंजन, पटना (ANG INDIA NEWS) : कोरोना महामारी को लेकर पूरे सूबे में सरकार द्वारा चलाये जा रहे क्वारंटाइन सेंटरों पर आवासित श्रमिकों की वेदना को लेकर युवक कांग्रेस ने मुख्यमंत्री नितीश कुमार को पत्र लिखा है। युवक कांग्रेस के ललन कुमार ने मुख्यमंत्री को लिखे अपने पत्र को सार्वजनिक करते हुए जो लिखा है उसमें उन्होंने कुछ सवाल भी उठाये हैं जिसका मजमून कुछ इस प्रकार है।
माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी,
आशा है आप स्वस्थ और सांनद होंगे। क्योंकि काफी दिनों से आप अपने मुख्यमंत्री आवास के बाहर नहीं निकले हैं, इस कारण आपके सानंद की खबर भी सार्वजनिक नहीं हुई। हां, आपकी बैठकों की कई तस्वीरें और चुनिंदा क्वारंटाइन सेंटरों के लोगों द्वारा वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए लोगो से बातचीत होने की खबर अलबत्ता सार्वजनिक हुई। लेकिन दुर्भाग्य है कि उन क्वारंटाइन सेंटरों की आपके द्वारा सुधि नहीं ली गई, जिस क्वारंटाइन सेंटर में विषैला सांप निकल गया। उन क्वारंटाइन सेंटरों के लोग भी अपने मुख्यमंत्री जी से बात नहीं कर सके, जो सूखी भात खाकर दिन काट रहे। गया के क्वारंटाइन सेंटर में भी एक युवक ने आत्महत्या कर ली। बिहार के क्वारंटाइन सेंटरों की कहानी तो यहां तक चली कि खाने में बिच्छु तक पाया गया। क्या मुख्यमंत्री जी ऐसे क्वारंटाइन सेंटरों के लोग खुद को अभागे नहीं मानेंगे? मुख्यमंत्री जी आपके 15 साल का शासनकाल भी ’खुद के चेहरा’ चमकाने से ज्यादा कुछ नहीं रहा। उसी तरह आपने भी चुनिंदा क्वारंटाइन सेंटरों को चमका कर वीडियो कांफ्रेंसिंग कर ली। लेकिन उन मजदूरों का क्या जो कटिहार स्टेशन पर उतरते है और उनका स्वागत पुलिस की लाठियां करती हैं। मुख्यमंत्री जी, सरकारी आँकड़ो के अनुसार अभी तक 25 से 30 लाख से अधिक श्रमिक बाहरी राज्यों से वापस बिहार आयें हैं, जबकि अभी तक राज्य में कोरोना की जांच मात्र एक लाख लोगों की भी नहीं हुई है। जब जांच ही नहीं हुई है, तो कोरोना फैलाने का आरोप इन प्रवासी मजूदरों पर क्यों लगाया जा रहा है? कभी इन मजदरों के अंदर उन भूख और तड़प को भी देखने की कोशिश कीजिए श्रीमान। उनके दर्द को समझिये, जब ये अपना घर -बार छोड़कर यहां से गए और अब अपनी पूरी बसी बसाई गृहस्थी उजाडकर फिर से वापस बिहार आ गए। मुख्यमंत्री जी, युवक कांग्रेस की मांग है बाहर से आने वाले सभी प्रवासी मजदूरों को और राज्य के सभी गरीब रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के बैक खाते में 10 हजार रुपये तत्काल भेजी जाए तथा जब तक इन प्रवासी मजदूरों को रोजगार नहीं मिल पाता तब तक इन्हे पेंशन या भत्ता के तौर पर प्रतिमाह 2500 रुपये दिया जाए। आखिर यही मजदूर राष्ट्र निर्माता है। दुर्भाग्य है कि ये आज पिछली पंक्ति में खड़े हैं।