PURNIA NEWS शम्भु रॉय : मुनि श्री आनंद जी ने जैन धर्म में बारह व्रत की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भगवान महावीर ने जैन धर्म को दो भागों में विभाजित किया। पहला सर्व-विरति, जिसमें साधु-साध्वी सांसारिक जीवन का पूर्ण त्याग करते हैं, और दूसरा देश-विरति, जिसमें श्रावक-श्राविका गृहस्थ जीवन जीते हुए धर्म का पालन करते हैं। उन्होंने बताया कि बारह व्रतों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है। पहले पांच अणुव्रत हैं जिनमें प्राणातिपात विरमण, मृषावाद विरमण, अदत्तादान विरमण, मैथुन विरमण और परिग्रह विरमण शामिल हैं।
अगले तीन गुणव्रत हैं जिनमें दिक परिमाण, भोगोपभोग विरमण और अनर्थदंड विरमण आते हैं। अंतिम चार शिक्षा व्रत हैं जिनमें सामायिक, देशावगाशिक, पौषध और अतिथि संविभाग को रखा गया है। मुनि श्री आनंद ने कहा कि प्रत्येक व्रत के अपने विशिष्ट अतिचार यानी दोष हैं, जिनसे बचना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि श्रावक को बारह व्रतों का पालन करते समय सर्व विरति साधु मार्ग की प्राप्ति की भावना रखनी चाहिए। इन व्रतों का पालन करने से मनुष्य का आचरण शुद्ध होता है और आत्मा का कल्याण होता है। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।