सहरसा, अजय कुमार: जिला विधिवेत्ता संघ के अध्यक्ष एवं सचिव ने महामहीम राष्ट्रपति को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा शीध्रता एवं आतुरता में समलैगिंक व्यक्तियों के विवाह को विधिक मान्यता न देने के बावत एक अनुरोध पत्र लिखा है। भेजे गये अभ्यावेदन में जिला विधिवेत्ता संघ के अध्यक्ष विनोद कुमार झा एवं महासचिव कृष्ण मुरारी प्रसाद ने कहा है कि भारत देश आज सामाजिक आथिक क्षेत्रों की अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा तब विषयान्तर्गत विषय को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनने एवं निर्णीत करने की कोई गंभीर आवश्यकता नहीं है। देश के नागरिकों की बुनियादी समस्याओं जैसे गरीबी उन्मूलन, नि:शुल्क शिक्षा क क्रियान्वयन, प्रदूषण मुक्त पर्यावरण का अधिकार, जनसंख्या नियंत्रण की समस्या, देश की पूरी आबादी को प्रभावत कर रही है। उक्त गंभीर समस्याओं के संबंध में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न तो कोई तत्पराता दिखई गयी है ना ही कोई न्यायिक सक्रियता दिखई है।
उन्होंने कहा है कि भारत धर्मों, जातियों, उप जातियों का देश है। इसमे शताब्दियों से केवल जैविक पुरुष एवं जैविक महिला के मध्य विवाह को मान्यता दी है। भारत के सर्वोच्च न्यायाल द्वारा नालसा, नवतेज जौहार के मामलों में समलैगिंकों एवं विपरीत लिंग के अधिकारों को पूर्व से ही संरक्षित किया है। भेजे गये अनुरोध पत्र में उन्होंने यह भी कहा है कि भारत में विवाह का एक सभ्यतागत महत्व है। जिसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 246 के अंतर्गत सक्षम विधायिका द्वारा अपनी शक्ति का प्रयोग कर बनाया है।उसे कानूनी रुप से मान्यता प्रदान की गयी और विनियमित किया गया। न्यायालय विवाह नामक संस्था को न्यायालयीन व्याख्या से विधायिका द्वारा दिये गये विवाह संस्था के मूर्त स्वरुप को नष्ट नहीं कर सकती है। उन्होंने इस महत्वपूर्ण विषय पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिखाई जा रही आतुरता पर अपनी गहन पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा है कि यह सुनिश्चित करने का प्रयास करें कि समलैंगिक विवाह न्यायपालिका द्वारा वैध नहीं किया जाय।
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