- सावन में कहीं जल-प्रलय, तो कहीं सूखाड, प्रखंड की दो नदियां सूखीं, किसानों के चेहरे पर तनाव
- टीकापट्टी का कोसीधार एवं कांप घाट पर बहनेवाली कारी कोसी नदी सूख गई
- सावन माह में ऐसा कभी नहीं देखा गया कि दो-दो नदियां पानी के लिए प्यासी रह गईं
पूर्णिया, अभय कुमार सिंह: कभी सालोभर कल-कल भरती तथा यहां के लोगों के लिए जीविकोपार्जन एवं जीवों की प्यास बुझाती नदियां स्वयं अब इस तरह से प्यासी हो गई हैं कि इसके अंदर जन्म लिये घास-फूसों का भी प्यास नहीं बुझा पा रही हैं। यह हाल है यहां के दो नदियां का जो सावन माह में भी सूखी पडी हैं, जो ना सिर्फ बिगडते पर्यावरण के लिए गवाह बन रही हैं, बल्कि यहां के किसानों सहित इन नदियों से अपनी जीविका पाल रहे लोग भी भूखमरी के शिकार होने लगे हैं। यह बता दें कि प्रखंड में नदियों का जाल बिछा हुआ है। एक कोसी धार जो रूपौली के पूर्वी किनारे उत्तर से दक्षिण रूपौली एवं कटिहार जिला के फलका एवं कुरसेला प्रखंडों की सीमा को छूती हुई बिहार की शोक कही जानेवाली बडी कोसी नदी में कोशकीपुर के आसपास मिल जाती है। ठीक इसी तरह इसके पश्चिम एक कदईधार है, जो गांवों से वर्षा आदि के पानी को बहाकर कारी कोसी में मिला देती है। तीसरी नदी कारी कोसी है, जो उत्तर से दक्षिण की ओर बहती है। यह भवानीपुर एवं रूपौली सीमा के पास पकडियाघाट से होते हुए कोशकीपुर आती है तथा वह भी बडी कोसी में मिल जाती है। रूपौली के दक्षिण एवं रूपौली तथा भागलपुर जिला के सीमा पर पश्चिम से पूरब दिशा की ओर विजय गांव से अंझरी, सहोडा होते हुए कुरसेला स्थित गंगा संगम में मिल जाती है। इस नदी में ही केवल पानी देखने को मिल रहा है। जो हमेशा ही अपना विनाश लीला दिखाती रहती है। 1990 के दशक में इन नदियों में बहाव होता रहता था, जिससे यहां के खासकर मछुआरा वर्ग के लोगों का सबसे बडा जीविका साधन होता था। वे सालोभर इन नदियों से मछली मारकर अपना पेट भरते थे। परंतु बिगडते पर्यावरण के साथ सबसे पहले टीकापट्टी कोसी धार 1990 ई के आसपास सूख गई। इससे किसानों की होनेवाली सिंचाई पर भी बडा असर पडा। इसके बाद इस वर्ष कारी कोसी नदी सूख गई है। कदईधार में तो पानी बरसने पर उसमें धारा बनती है।
- पर्यावरण दूषित होने का परिणाम माना जा रहा है-
जिस प्रकार पेडों की कटाई की गई तथा उसके बदले पेड नहीं लगे, उसी का परिणाम है कि इस तरह के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। पर्यावरण को बचाने के लिए मनरेगा योजना से पेड-पौधे लगाने की योजना सरकार की है, परंतु अगर कागजां पर देखा जाए, तो यहां हर जगह पेड-ही-पेड होनी चाहिए। सच्चाई यही है कि पेड लगाने के नाम पर यहां पचीस प्रतिशत भी पौधे नहीं दिखाई पडेंगे।
कुल मिलाकर सावन माह में नदियों का सूखा रहना, यह निश्चित रूप से चिंता का कारण बन गया है। अब तो ऐसा लगता है कि ये सूखी नदियां सिर्फ गांवों में बाढ लाने में सहायक होंगी। इससे लोगों की जीविका का साधन अब खत्म हो जाएगा। देखें सरकार या आमआदमी इसको लेकर कितने संवेदनशील होते हैं।
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