पूर्णिया: बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के कुलपति डॉ॰ डी॰ आर॰ सिंह के निर्देश पर भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय पूर्णियाँ में विकसित भारत एट 2047 एवं मेरी माटी मेरा देश जागरूकता अभियान अंतर्गत आत्मा किशनगंज द्वारा प्रायोजित पॉच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन कृषि महाविद्यालय, पूर्णियाँ के संयुक्त तत्वाधान में किया गया। कार्यक्रम का उदधाटन प्राचार्य डॉ पारस नाथ, श्री आभाष चन्द्र मंडल एवं श्री लाल बहादुर साफी के द्वारा संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय पूर्णियाँ के प्राचार्य डॉ पारस नाथ ने किया। इस कार्यक्रम में कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंध अभिकरण (आत्मा) किशनगंज के अन्तर्गत नेशनल मिशन ऑन एग्रीकल्चरल एक्सटेंशन एण्ड टेक्नोलॉजी के तहत सब मिशन एग्रीकल्चरल एक्सटेंशन आत्मा योजना अंतर्गत पॉच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में 56 प्रशिक्षणार्थियों ने भाग लिया तथा प्रक्षेत्र परिभ्रमण भी कराया, जिसमें प्रमुख रुप से प्रशिक्षणार्थियों को मखाना उत्पादन एवं प्रबंधन विषय पर प्रशिक्षण दिया गया। कोसी क्षेत्र के प्रमुख फसल मखाना की कृषि पद्धतियों, जल प्रबन्धन, कीट एवं रोग एकीकृत प्रबन्धन, फसलों का बीज उत्पादन तकनीक के बारे में विस्तार पूर्वक महाविद्यालय के विभिन्न विशेषज्ञ वैज्ञानिकों द्वारा जानकारी प्रदान की गई।
प्राचार्य डॉ पारस नाथ ने अपने संबोधन में किसानों को बताया कि बेकार पडेे जल जमाव वाले क्षेत्रों में मखाना आधारित फसल प्रणाली को अपनाकर अपनी आमदनी को बढ़ा सकते है साथ ही कैसे स्थानीय जलवायु कृषि तकनीक को प्रभावित करती है इसके विषय में विस्तारपूर्वक जानकारी दी। श्री आभाष चन्द्र मंडल उपनिदेशक मत्स्य, पूर्णियॉ प्रमण्डल, पूर्णियॉ ने महाविद्यालय के मखाना अनुसंधान एवं विकास के कार्यो की सराहना करते हुए कहा कि मखाना-सह-मत्स्यपालन एक लाभकारी उद्यम साबित हुई है इसको और अधिक प्रभावी बनाने के लिए मत्स्य की विभिन्न प्रजातियों जैसेः नाइल तिलपिया, चन्ना, देशी मांगुर आदि को मखाना-सह-मत्स्यपालन में संचयन कर अधिक लाभकारी साबित हो सकता है। मखाना-सह-मत्स्यपालन में 250 ग्राम प्रति एकड़ प्रोबायोटिक प्रयोग करने का सुझाव प्रशिक्षाणियों को दियें। श्री लाल बहादुर साफी, जिला मत्स्य पदाधिकारी, पूर्णियॉ ने मत्स्य पालन की आधुनिक तकनीक के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी। विश्वविद्यालय प्राध्यापक-सह-मुख्य वैज्ञानिक वैज्ञानिक, मृदा विज्ञान डॉ जर्नादन प्रसाद द्वारा मृदा स्वास्थ्य कार्ड क्या है, मृदा स्वास्थ्य कार्ड की प्रमुख विशेषताएँ, मृदा स्वास्थ्य कार्ड को अपनाने के फायदे, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना मृदा स्वास्थ्य कार्ड के उपयोगिता के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी प्रदान की। मृदा वैज्ञानिक डा॰ रूबी साहा के द्वारा प्रशिक्षणार्थियों को मृदा नमुना प्राप्त करन के तरीके, मृदा परीक्षण की तकनीक एवं वर्तमान में मृदा परीक्षण की उपयोगिता पर चर्चा की एवं मृदा परीक्षण प्रयोेगशाला के महत्वपूर्ण उपकरणों से सम्बन्धित व्याख्यान भी दिया।
इस अवसर पर डॉÛ अनिल कुमार ने मखाना पौधशाला प्रबंधन तकनीक के विभिन्न आयामों पर चर्चा करते हुए बताया कि मखाना एक ऐसी फसल है जिसमें किसी भी तरीके का फसल अवशेष नहीं बचता कि किसान उसे जलाये। मखाना गुर्री की बहुराई के बाद पूरा अवषेष मिट्टी में सड़गल कर पोषक तत्व का रूप धारण कर लेता है। इस कार्यक्रम में महाविद्यालय के वैज्ञानिक डा॰ जर्नादन प्रसाद, डा॰ अनिल कुमार, डॉ राधेष्याम, डॉ रूबी साहा, डा॰ तपन गोराई, डॉ पंकज कुमार मंडल, डॉ विकास कुमार, डॉ चुन्नी कुमारी, डॉ अल्पना कुसुम, डॉ जाकिर हुसैन, डॉ आशीष चौरसिया एवं स्नेहा के साथ कर्मचारियों में कैलाश मंडल, गजेन्द्र मंडल, श्रवण कुमार, चन्द्रमणि चौधरी आदि ने उत्साह पूर्वक भाग लेकर कार्यक्रम को सफल बनाया।इस अवसर पर कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंध अभिकरण (आत्मा) किशनगंज के कोचाधामन एवं दिधलबैंक प्रखण्ड के प्रखण्ड कृषि तकनीकी प्रबंधक क्रमश: ननकेश कुमार एवं रवि कुमार के साथ किशनगंज के विभिन्न प्रखण्डों के कुल 56 प्रशिक्षणार्थियों ने भाग लिया जिसमें क्रमश: परवेज आलम, मो0 रमजान, मदन प्रसाद दास, दिलीप बहारदार, जेठा मुर्मु, सरस्वती देवी, लुतन कुमारी, बोबिता कुमारी आदि ने भाग लिया। कार्यक्रम का मंच संचालन डा॰ अनिल कुमार तथा धन्यवाद ज्ञापन मृदा वैज्ञानिक डॉ रूबी साहा द्वारा किया गया।