पूर्णिया/रूपौली/ अभय कुमार सिंह : टीकापटी थाना क्षेत्र के पुरानी नंदगोला कब्रिस्तान बहियार दियारा में लगभग 60 एकड में लगी किसानों की मक्का की फसल दाना भी नहीं पकडा तथा मोचा पर ही सूख गया है । किसान चित्कार कर उठे हैं, बस अब वे डबडबाई आंखों से अपने फसल को निहार रहे हैं । यह सिर्फ यहीं की हालत नहीं है, बल्कि साधुपुर दियारा क्षेत्र के अंझरी गांव के किसानों के खेतों में भी देखा गया है । बस यही चिंता इस क्षेत्र में मात्र कए फसल होने के कारण इसी रबी फसल पर पूरे साल की बजट टिकी रहती है।
उन्होंने इसकी भरपाई के लिए सरकार से मुआवजा की मांग हेतु कृषि पदाधिकारी से गुहार लगाई है । इस संबंध में किसान मिथिलेश साह, ठाकुर पासवान, पवन जायसवाल, विकास पासवान, संजय मंडल, अनिल पासवान, विलास पासवान, अरूण पासवान, विकास पंडित, विजय साह, महेश्वर पासवान, अभिनाश कुमार राय, बबलु ठाकुर, गुरूदेव मंडल, रतन रजक, महेश्वर रजक, नागेश्वर जायसवाल, शम्भू भगत, भोला भगत, गोपाल जायसवाल, लखन मंडल, रघु मंडल, मदन मंडल, रतन यादव, जटो पासवान, निर्भय यादव आदि ने बताया कि वेलोग नवंबर माह में मक्का की फसल हर साल की तरह अपनी-अपनी जमीन में लगाए थे।
मक्का की फसल काफी अच्छी थी तथा उसमें दानो आने लगा था, परंतु अचानक पिछले पंद्रह दिनों से अचानक खेत की फसल सूखने लगी, जबकि समय-समय पर वे पानी भी देते आ रहे हैं । पहले लगा कि हो सकता है, कोई कारण हो,परंतु देखते-देखते इस बहियार स्थित दर्जनों किसानों के लगभग 60 एकड में लगी फसल सूखनी षुरू हो गई । वेलोग इसके लिए काफी उपाय किये, परंतु कोई फायदा नहीं हुआ तथा सब सूख गया । इतना ही नहीं, इसका रकवा बढता चला जा रहा है । समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर वे करें तो क्या करें ।
दियारा में होती है मात्र एक फसल-
प्रखंड के दक्षिणी क्षेत्र बाढ प्रभावित माना जाता है, यह क्षेत्र टीकापटी एवं मोहनपुर थाना में आता है । यह भू-भाग लगभग दस किलोमीटर चैडा एवं तीस किलोमीटर लंबा, कोषकीपुर से विजयघाट तक का क्षेत्र आता है । इस क्षेत्र के दक्षिणी किनारे पर बिहार की षोक कही जानेवाली कोसी नदी पश्चिम से पूरब की दिशा में बहती है । इस बडे भू-भाग में बाढ आने के कारण मात्र एक फसल रबी ही होती है । इसी फसल पर इस क्षेत्र में रहनेवाले लोगों की जिंदगी टिकी रहती है । यह प्रथम बार देखा गया है कि इस क्षेत्र के कई भागों में इस तरह से मक्का की फसल सूख रही है । अगर इसके लिए सरकार समुचित रूप से कृषि वैज्ञानिकों का दल भेजकर सर्वेक्षण नहीं कराती है, तो निष्चित ही यह बहुत बडी समस्या हो सकती है । कुल मिलाकर यह एक भयानक रूप लेता चला जा रहा है, देखें सरकार इसपर क्या कदम उठाती है ।
यह रोग फफुंद जनक रोग है । जिस प्रकार केला की फसल में पनामा बिल्ट रोग लग गया तथा केला की फसल खत्म हो गई, उसी प्रकार यह अब मक्का की फसल को भी अपनी चपेट में ले रहा है । इतना ही नहीं, अब यह सब्जी वर्गीय फसलों में भी दिखाई पडने लगी है । अगर किसान अपने खेतों में फसल चक्र नहीं अपनाते हैं, तभी फसलों को बचाया जा सकता है । कृशि वैज्ञानिक डाॅ एसपी सिंहा के अनुसार किसान बर्मी कंपोश्ट के साथ 2 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा प्रतिएकड डालें । इसके बाद बुआई के 30 दिन बाद डाईफीना कोनोजोल एक मिली लीटर प्रति लीटर पानी में डालकर छिडकाव करें । फिर 60 दिनों बाद इसी दवा से छिडकाव करें, इससे रोग पर काबू पाया जा सकता है ।