कला- सस्कृति : आप गाँधी को जानते हैं। गाँधी को जानने से आपका अभिप्राय क्या है ? क्या सिर्फ़ यह जानना हुआ कि एक गाँधी थे और उन्होंने देश को आज़ाद कराने में प्रमुख भूमिका निभाई थी। कुछ सतही तौर पर जानने वाले उन्हें देश के बँटवारे का ज़िम्मेदार मानते हैं और उनके ख़िलाफ़ आग उगलते हैं।
कुछ लोगों ने बापू द्वारा लिखी गई उनकी आत्मकथा, जो उनके बाल्यकाल और किशोरावस्था की कुछ बातों तक ही सीमित है पढ़कर मान लिया कि वो गाँधी को जानते हैं। बापू द्वारा लिखी गई किताबों को पढ़कर भी आप नहीं जान सकते कि बापू क्या थे। क्योंकि बापू अपनी महानता को ख़ुद कैसे लिख सकते थे। उन्होंने लिखा ही नहीं। उनके द्वारा लिखी गई किताबों में विभिन्न मुद्दों मसलों पर आप उनका दृष्टिकोण और विचार ही जान सकते हैं।
तो…. बापू की महानता, उनके समग्र संघर्ष, द अफ़्रीका में दयनीय दशा में जी रहे भारतीय गिरमिटिया श्रमिकों के लिए संघर्ष की आंच में तपकर एक मोहन का महात्मा बनना, फिर भारत में लौटकर यहाँ के स्वाधीनता संघर्ष में कूद पड़ना, 1917 में चम्पारण में निलहे किसानों को ब्रिटिश प्लांटरों और शासकों के अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए भीषण गर्मी के दिनों में किए गए कामयाब संघर्ष, जिसने हिंदुस्तान में गांधी को चर्चा में ला दिया और दासता से त्रस्त निरीह जनता के दिलों में एक उम्मीद की लौ जला दी।
लोगों के मनमस्तिष्क पर गाँधी चसपा हो गए…. फिर आज़ादी का एक लंबा संघर्ष…..को जानने के लिए आपको उन किताबों को पढ़ना होगा, जिसे देश दुनिया के लेखकों पत्रकारों साहित्यकारों ने लिखी है।
क्या अमेरिकी पत्रकार लुई फ़िसर की पुस्तक द लाइफ ऑफ़ महात्मा गांधी (इस किताब को मूल में रखकर ही रिचर्ड एतनबरो ने गाँधी फ़िल्म बनाई थी), गिरिराज किशोर की पहला गिरमिटिया, नोबल पुरस्कार से सम्मानित फ़्रांसिसी लेखक रोमा रोला द्वारा लिखी गई गाँधी की जीवनी, रामचंद्र गुहा की बुक- गाँधी- द ईयर्स दैट चेंज्ड द वर्ल्ड, गाँधी बिफ़ोर इंडिया, डॉ राजेंद्र प्रसाद की आत्मकथा जैसी अनेक किताबों को पढ़े बिना गाँधी के संघर्ष को समग्रता में जाना जा सकता है ? मेरा जवाब है – नहीं।
और हाँ, मैंने इन किताबों को पढ़ा है। इन किताबों को पढ़ने के बाद ही मैं बापू को वास्तव में जान पाया। वरना इसके पहले मैं भी गांधी को जानने का दम्भ भरता था।