पूर्णिया: रुपौली विधानसभा उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी शंकर सिंह ने शानदार जीत हासिल की है। आज संपन्न हुई मतगणना में सिंह ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 8,211 मतों के बड़े अंतर से पराजित किया। यह चुनाव काफी रोचक रहा, जिसमें सभी प्रमुख दलों के उम्मीदवारों ने कड़ी टक्कर दी। चुनाव प्रचार के दौरान सभी प्रत्याशियों ने अपनी-अपनी जीत के दावे किए थे, जिससे मुकाबला और भी दिलचस्प हो गया था। मतगणना स्थल पर जनता दल (युनाइटेड) के कई वरिष्ठ पदाधिकारी और नेतागण भी मौजूद थे, जो इस चुनाव में पार्टी की गहरी रुचि को दर्शाता है। शंकर सिंह की यह अप्रत्याशित जीत स्थानीय राजनीति में भूचाल ला सकती है। एक निर्दलीय उम्मीदवार की इतने बड़े अंतर से जीत, बड़े दलों के लिए चिंता का विषय हो सकती है। विजेता शंकर सिंह से अपनी जीत और भावी योजनाओं पर बयान की प्रतीक्षा है। इस बीच, हारे हुए उम्मीदवारों की प्रतिक्रिया भी देखने लायक होगी। चुनाव आयोग ने मतगणना के शांतिपूर्ण संपन्न होने पर संतोष व्यक्त किया है। इस चुनाव में शंकर सिंह को कुल मत 67779 वोट आए और कलाधर मंडल जदयू को 59568 वोट मिले जबकि राजद की बीमा भारती को 30108 वोट मिले।
बीमा भारती ने लोक सभा चुनाव के लिए रुपौली के विधायक प्रत्यासी से इस्तीफा दिया था। उसमें हार गई। विधायक पद के लिए लड़ी इसमें भी उन्हें शिकस्त मिली। उधर कलाधर मंडल जो एनडीए के उम्मीदाव थे दूसरे स्थान पर आए। यह वोट उन्हें बिहार सरकार के सभी मंत्रियों के जी जान लगाने के बाद मिली। खासकर मंत्री लेसी सिंह ने एड़ी चोटी एक कर दिया था। उनकी मेहनत को नकारा नहीं जा सकता। पूर्व एमपी संतोष कुशवाहा सहित एनडीए गठबंधन के भाजपा, जदयू, लोजपा तथा हम के सारे दिग्गज इस चुनाव में उतर गए, जिसका परिणाम हुआ की कलाधर मंडल दूसरे स्थान पर आए। जबकि चर्चा आम थी कि बीमा भारती से शंकर सिंह की टक्कर होगी। इस चुनाव में पूर्णिया सांसद पप्पू यादव ने बीमा भारती को अपना समर्थन दिया था। परंतु उनका समर्थन भी बीमा भारती को काम नहीं आया। बीमा भारती लगभग बारह बजे दोपहर में मतगणना स्थल से चली गई थी। इधर शंकर सिंह स्थानीय लोगों, मित्रों और परिजनों के समर्थन के साथ अपने द्वारा लगातार किए गए सामाजिक कामों के बल बूते चुनाव लड़ रहे थे। शंकर सिंह 2005 में लोजपा से चुनाव जीते थे, जब लोजपा अध्यक्ष रामविलास पासवान थे। परंतु पार्टियों में आपसी सहमति नहीं होने के कारण एक साल तक सरकार नहीं बन पाई और ये विधान सभा का मुंह नहीं देख पाए थे।