पूर्णिया/रूपौली/अभय कुमार सिंह : बाबू अब सबकुछ बदल गया है, वार्ड सदस्य से लेकर उपर तक सभी बेईमान हो गए हैं । देश को भी दांव पर लगाने से नहीं चूक रहे हैं । देश को लूटने के लिए सभी ने मिलकर बेईमानी एवं जाति-धर्म की ऐसी लगीर खींच दी है कि निकट भविष्य में यह लकीर मिटनेवाली नहीं दिख रही है । इससे तो बेहतर गुलामी ही थी । लोकतंत्र के महापर्व तो इसलिए आता है कि एक-एक व्यक्ति में फूट डालकर उनकी एकता भंग कर दो ।
उक्त बातें मोहनपुर थाना क्षेत्र के स्थानीय गांव के बुजूर्ग 89 वर्षीय सह महर्षि मेंहीं के परमशिष्य रामजी जायसवाल ने देश के वत्र्तमान परिदृष्य को देखते हुए दुख व्यक्त करते हुए कही । यह बता दें कि बुजूर्ग रामजी जायसवाल मोहनपुर गांव के रहनेवाले हैं तथा उन्हें तीन-तीन बार लकवा मार गया है, जिससे उनकी याददास्त बहुत कम हो गई है । वे किसी प्रकार अपनी बातें बडे ही दुखी भाव से बताते नजर आए ।
उन्होंने कहा कि बाबू अब सबकुछ बदल गया है, वार्ड सदस्य से लेकर उपर तक सभी बेईमान हो गए हैं । अफसरशाही हावी हो गया है । नेता लोग देश को भी दांव पर लगाने से नहीं चूक रहे हैं । देश को लूटने के लिए सभी ने मिलकर बेईमानी एवं जाति-धर्म की ऐसी लगीर खींच दी है कि निकट भविष्य में यह लकीर मिटनेवाली नहीं दिख रही है । इससे तो बेहतर गुलामी ही थी ।
लोकतंत्र के महापर्व तो इसलिए आता है कि एक-एक व्यक्ति में फूट डालकर उनकी एकता भंग कर दो तथा देश को लूटते रहो । वे भावुक स्वर तथा बहुत ही दिमाग पर जोर डालते हुए कहा कि उनकी आंखें गुलाम भारत में खुली थी । अपनी आंखों से बचपन में ही बहुत-कुछ देख चूके हैं । महात्मा गांधीजी की हत्या के बाद देश के विभिन्न जगहों पर श्राद्धकर्म का आयोजन हुआ था । तब वे 13 वर्ष की अवस्था में भागलपुर जिला के मदरौनी गांव में आयोजित श्राद्धकर्म में भाग लिया था ।
उनके प्रति इतनी असीम श्रद्धा लोगों में थी कि हरकोई रोया था। देश का पहला चुनाव उन्हें कुछ-कुछ याद है । तब पूरे देख में इतनी ख़ुशी थी कि उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है । परंतु इसके बाद जब-जब चुनाव हुए, तबतब देश में विभेद की लकीरें खींचती चली गई । अब तो लग ही नहीं रहा है कि कभी सभी जाति-धर्म के लोगों ने इस देश की आजादी के लिए बिना किसी भेदभाव के मिलकर अपनी कुर्बानियां दी होंगी ।
तब सभी प्रत्याशियों के चेहरे पर हमेशा ही खुशियाँ देखी जाती थी, पैदल-साईकिल से सभी से घर-घर मिलते थे, तब कितना आनंद आता था । उनमें भी कोई भेदभाव नहीं दिखाई देता था। अब तो आम आदमी में इतना विभेद पैदा हो गया है कि एक-दूसरे पर शक भरी निगाहें डालते रहते हैं । चुनाव आम आदमी की सेवा के नहीं लडा जा रहा है, बल्कि अपना पेट एवं घर भरने के लिए लडा जा रहा है ।
साधारण सबसे निचले पायदान पर खडा एक वार्ड सदस्य भी किसी भी जनता की बात बिना पैसा के नहीं सुन रहा है । अब तो यह संस्कार में शामिल हो गया है । वे तो अब आखिरी मुकाम पर हैं, तीन-तीन बार लकवा मार दिया, किसी प्रकार अंतिम घड़ी गिन रहे हैं । अगर समय रहते लोग एवं नेता नहीं चूके तो देश में अस्थिरता पैदा हो जाएगी ।