सहरसा/अजय कुमार : कहा जाता है कि आज से 2000 वर्ष पूर्व त्रेतायुग में देवताओं की विनती पर ब्रह्माजी ने नृत्य वेद तैयार किया। तभी से नृत्य की उत्पत्ति संसार में मानी जाती है। इस नृत्य वेद में सामवेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद व ऋग्वेद से कई चीजों को शामिल किया गया। नृत्य एक सशक्त अभिव्यक्ति है जो पृथ्वी और आकाश से संवाद करती है। हमारी खुशी हमारे भय और हमारी आकांक्षाओं को व्यक्त करती है।
एक हालिया अध्ययन के अनुसार डांस चाहे किसी प्रकार का हो, लोगो में शारीरिक सक्रियता बढ़ाने के साथ उनके संबंधों को भी अच्छा बनाता है। यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स में हुआ ये अध्ययन बताता है कि नियमित डांस करना, डांस कक्षाओं में भाग लेना लोगो की संपूर्ण सेहत पर अच्छा असर डालता है। इससे शरीर का लचीलापन बढ़ता है, जो चोटिल होने की आशंका को कम कर देता है। शारीरिक सक्रियता की कमी लोगो में गैर संचारी रोगों व मृत्यु के खतरे को बढ़ाती हैं।
डांस करने से बेचैनी और मूड स्विंग्स के लक्षणों में भी कमी आती है। नियमित डांस का अभ्यास हृदय के धमनियों को भी संकरा होने से रोकता है। मेरी गुरु जी कहती है नृत्य सुंदर होना चाहिए आंखो में सुकून देने वाला हो हमारी संस्कृति से जुड़ा हो शास्त्रीय नृत्य व लोक नृत्य ऐसे ही नृत्य है। जैसे हमारे मिथिला के लोकनृत्य झिझिया,सामा चकेवा,जट जटिन ये लेकिन ये अब धीरे धीरे लुप्त हो रहे हैं ।
पंचवटी चौक सहरसा निवासी रोहित झा, पूनम झा एवं संदीप झा के सुपुत्र हैं व बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय परड़ी चैनपुर में नवनियुक्त नृत्य विषय के अध्यापक हैं।इनके कथक नृत्य की प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय शशि सरोजनी रंगमंच सेवा संस्थान से आरंभ हुई। नृत्य प्रशिक्षण के प्रारंभिक काल में ही इनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर इन्हें आरटी राजन युवा पुरस्कार दिया गया था।
सहरसा से बाहर गुरू नीलम चौधरी, सुब्रतो पंडित, ममता महाराज,दुर्गा आर्या, जैसे नामी गिरामी नृत्य गुरू ने भी इन्हें नृत्य की तालीम दी। पद्म विभूषण प० बिरजू महाराज जी के वर्कशॉफ में चयनित होकर इन्हें कथक नृत्य का विशेष गुर सीखने का भी सुअवसर प्राप्त हुआ है।गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत राष्ट्रीय कथक केन्द्र नई दिल्ली की सुविख्यात कत्थक गुरू श्रीमति मालती श्याम जी के मार्गदर्शन में साधनारत हैं। वही शिक्षा विभाग सहरसा में अपनी सेवा प्रदान कर रहे हैं।