पटना: Bihar Politics बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ आ गया है। प्रशांत किशोर के नेतृत्व में जन सुराज पार्टी का उदय एनडीए और इंडिया गठबंधन दोनों के लिए चिंता का विषय बन गया है। राज्य की सियासी हलचल में यह नया समीकरण 2025 के विधानसभा चुनावों को लेकर कई सवाल खड़े कर रहा है। जन सुराज पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता ने स्थापित दलों को अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करने पर मजबूर कर दिया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो आमतौर पर मौन रहते हैं, को भी इस नए राजनीतिक समीकरण पर प्रतिक्रिया देनी पड़ी है। उन्होंने प्रशांत किशोर के शराबबंदी हटाने के प्रस्ताव की आलोचना की है, जो उनकी सरकार की प्रमुख नीतियों में से एक है।
दूसरी ओर, आरजेडी ने अपने कार्यकर्ताओं को जन सुराज के प्रभाव से सावधान रहने का निर्देश दिया है। पार्टी ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या बढ़ाने का फैसला किया है, जो प्रशांत किशोर की 75 मुस्लिम उम्मीदवार उतारने की घोषणा का प्रत्युत्तर माना जा रहा है। जन सुराज पार्टी का फोकस सिर्फ मुस्लिम वोटरों तक सीमित नहीं है। दलित, महिला और युवा वोटरों को भी लुभाने की कोशिश की जा रही है, जो परंपरागत रूप से विभिन्न दलों के वोट बैंक रहे हैं। यह रणनीति न केवल आरजेडी और जेडीयू, बल्कि भाजपा के लिए भी चुनौती पेश कर सकती है। विश्लेषकों का मानना है कि अगर प्रशांत किशोर की लोकप्रियता बरकरार रहती है, तो वे 2025 के चुनावों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
हालांकि, उनकी पार्टी जीत हासिल कर पाएगी या नहीं, यह कहना मुश्किल है, लेकिन वे निश्चित रूप से वोट काटने में सफल हो सकते हैं, जो मुख्य रूप से एनडीए को नुकसान पहुंचा सकता है। इस नए राजनीतिक परिदृश्य में, आरजेडी अपने पारंपरिक मुस्लिम-यादव गठजोड़ को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है, जबकि एनडीए गठबंधन अपने वोट बैंक को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है। जन सुराज पार्टी का उदय बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय लिख सकता है, जिसमें पारंपरिक जाति-आधारित राजनीति से हटकर मुद्दों पर आधारित राजनीति की ओर बदलाव देखा जा सकता है। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि कैसे विभिन्न राजनीतिक दल इस नए चुनौती का सामना करते हैं और अपनी रणनीतियों में बदलाव लाते हैं। 2025 का विधानसभा चुनाव निश्चित रूप से बिहार के राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।