पूर्णिया आकर लहक परिवार ने समारोह पूर्वक दिया वरिष्ठ साहित्यकार को सम्मान
पूर्णिया: देश के चर्चित लेखकों में शुमार, पूर्णिया के प्रख्यात साहित्यकार, चंद्रकिशोर जायसवाल को वर्ष 2023 के मान बहादुर सिंह लहक सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मान मे इन्हें प्रतीक चिन्ह के साथ पुरस्कार राशि भी प्रदान की गई। इन्हे यह समम्मान प्रदान करने के लिए लहक के संपादक निर्भय दिव्यांश और उनकी पूरी टीम का आगमन पूर्णिया में हुआ। शनिवार के दिन समारोह पूर्वक वरिष्ठ साहित्यकर चंद्रकिशोर जायसवाल को यह सम्मान प्रदान किया गया। इस सम्मान समारोह का आयोजन पूर्णिया के विद्या विहार आवसीय स्कूल परिसर अवस्थित, रविवंश नारायण मिश्र ऑडिटोरियम में लहक परिवार (चर्चित साहित्यिक पत्रिका प्र्रकाशन समुह) द्वारा किया गय। कार्यक्रम की अध्यक्षता मधेपुरा से आए प्रो0 विनय कुमार चौधरी ने की तथा बीज वक्तव्य नई दिल्ली से आए विद्वान करण सिंह चौहान ने दिया, जबकि मौके पर अन्य विद्वान वक्ता के रूप गुलाबचंद यादव मुंबई से, ब्रह्मदेव मंडल, सिवान से, सहायक प्रो0र प्रफुल्ल, मधेपुरा से, श्रीमंत जैनेंद्र, सहरसा से ,सदानंद सुमन रानीगंज अररिया से एवं डीएस कॉलेज के प्राचार्य संजय कुमार सिंह, कथाकार दिर्घ नारायण, विजय नंदन प्रसाद तथा गौरीशंकर पूर्वोत्री पूर्णिया से मौजूद रहे। आगंतुक अतिथियों का स्वागत विद्या विहार के ट्रस्टी मेमबर राजेश कुमार मिश्रा ने किया। कार्यक्रम के प्रथम सत्र में वरिष्ठ साहित्यकार चंद्रकिशोर जायसवाल द्वारा लिखित उपन्यास गवाह गैर हाजिर पर आधारित फिल्म रुई के बोझ का कुछ अंश प्रसारित किया गया फिर भोजन उपरांत मुख्य सत्र की शुरुआत हुई और सबसे पहले आगंतुक अतिथियों का स्वागत किया गया। इस अवसर पर पूर्णिया के साहित्य जगत एवं शिक्षा क्षेत्र से जुड़े कई विभूति मौजूद थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विनय कुमार चौधरी ने कहा कि, आदरणीय जयसवाल जी जन्म क्षेत्र मधेपुरा है लेकिन कर्म क्षेत्र पूर्णिया रहा है और उनकी साहित्यिक कृतियों की चर्चा पूरे देश में होती आ रही है, उनकी कहानियों व उपन्यास में समाज की वेदना और चिंतन सदैव व्यक्त होती रही है। आज इनका यह सम्मान हम सभी के लिए गौरवशाली क्षण है। जबकि अपना बीच वक्तव्य रखते हुए करण सिंह चौहान ने कहा, चंद्र किशोर जायसवाल का रचना संसार अपने आप में इतना समृद्ध है कि हम इसपर जितनी बात करें कम ही होगी, इनके शिल्पगत विशेषता से हम सभी अवगत हैं। खासतौर पर लोक तथ्यों को जिस प्रकार से यह अपने विषय वस्तु में शामिल करते हैं ,वह अपने आप में महत्वपूर्ण है। लेकिन अभी तक हम सही माईनों में इनका मूल्यांकन करने से वंचित हैं। इसलिए हमें इनकी रचनाओं पर समीक्षात्मक रूप में और अधिक कार्य करने की जरूरत है।
वहीं सीवान से आए विद्वान ब्रहमदेव मंडल ने एक के बाद उनकी कई कहानियों पर अपनी दृष्टि व्यक्त करते हुए कहा कि इनका उपन्यास हो या उनकी लिखी हुई कहानी, मैं उसे जितनी बार पढ़ता हूं, उतनी बार मुझे लगता है कि फिर से पढ़कर देखने की जरूरत है.. क्योंकि इनकी रचना दृष्टि अद्भुत है, जो हमे अपने आसपास के जीवन और हालात पर सोचने के लिए विवश करता है। कथाकार संजय सिंह ने कहा कि, मैं इनहें इस मान बहादुर सिंह सम्मान की प्राप्ति पर बधाई देता हूं और लाख परिवार के प्रति भी आभार व्यक्त करता हूं कि उन्होंने पूर्णिया जाकर इनका सम्मान किया मुझे लगता है कि यह इससे भी बढ़कर केवल इसी सम्मान को नहीं बल्कि इफको और अकादमी पुरस्कार जैसे प्रतिष्ठित साहित्यिक सम्मान को पाने का हक रखते हैं। वही मुंबई से आए वक्ता गुलाबचंद यादव ने अपनी बातों को रखते हुए कहा कि चंद्रकिशोर जायसवाल के उपन्यास और कहानियों को जब भी मैं पढ़ता हूं तो मुझे एक अलग से अनुभूति होती है इसलिए मैं उसे बार-बार पढ़ना चाहता हूं। उन्होंने मुंशी प्रेमचंद और फणीश्वर नाथ रेणु के कृतियों का उदाहरण देते हुए इस संदर्भ को संदर्भित किया कि वर्तमान में चंद्रकिशोर जायसवाल की रचना दृष्टि इन से कम महत्वपूर्ण नहीं है। गौरीशंकर पूर्वोत्री ने अपने वक्तम में नागबेसर कागा ले भाग और हिंगवा घाट में पानी रे जैसी कहानियों का उदाहरण देते हुए कहा कि,, चंद्रकिशोर जायसवाल ने अपने लेखकीय प्रतिबद्धता को कायम रखते हुए सदा ही साहित्य की सेवा की है। यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है जिसपर हमे गौर करना चाहिए कि उधर सन 1977 में जब रेणु जी स्मृति शेष हुए और इधर 1978 में चंद्र किशोर जायसवाल की पहली कहानी धर्मयुग में छपने के साथ यहां साहित्य में आगमन हुआ। तब इनकी उस कहानी को असंख्य पाठकों के साथ प्रेमचंद के सुपुत्र श्रीपाद राय ने भी काफी सरहाथा और तभी से पूरे देश मैं उनके नाम की चर्चा होने लगी। यह लोक पर्व छठ के जैसा था। जब संध्या की बेला में सूर्य डूबने के बाद सुबह सूर्यु उगता है तो सभी एक साथ उस उदयमान सुर्य को अर्घ्य देते हैं। यहां भी साहित्य जगत में कुछ ऐसा ही माहौल बना। आज यह हमारे लिए गर्व का क्षण है मैं अपने आदरणीय साहित्यकार को मिले इस सम्मान के लिए बधाई देता हूं और लहक परिवार के प्रति भी आभार व्यक्त करता हूं , इनका सम्मान हम सभी का सम्मान है। बुजुर्ग साहित्यकार चंद्र किशोर जायसवाल ने भी लहक परिवार के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हुए, अपने उद्गगार प्रकट किए और अपने मन की बात को सम्मान समारोह में उपस्थित अपने पाठकों के समक्ष रखा । अंत में कार्यक्रम में आए सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन यमुना प्रसाद प्रसाद ने किया। इस अवसर विद्या विहार आवासीय विद्यालय के कई शिक्षकों के साथ-साथ साहित्य और संस्कृति जगत से जुड़े गिरजानंद मिश्र, गिरींद्रनाथ झा, नूतन आनंद देवाआनंद, स्वरूप दास, कडा0 के के चौधरी, एम एच रहमान,गोविंद कुमार, संजय सनातन, संतोष विनोद मिश्रा संजय सलाद मोना, रानी सिंह, दिव्या त्रिवेदी अन्य सुधी साहित्य प्रेमी भी मौजूद रहे । पूरे समारोह में मच संचालन का दायित्व, बनारस से आई, चंद्रकिशोर जायसवाल के रचनाओं पर शोध कर रही शोधार्थी शिल्पी कुमारी ने संभाला।