पूर्णिया: हिंदू धर्म में सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, उस दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है, इसलिए इस दिन सूर्यदेव की पूजा का विधान है। कहीं-कहीं मकर संक्रांति पर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के साथ सूर्य देव की पूजा की जाती है। कुछ लोग परंपरागत और छुट्टी का दिन होने के कारण 14 जनवरी को यह पर्व मना रहे हैं। वैसे इस साल 15 जनवरी को मकर संक्रांति पड़ता है। मकर संक्रांति के दिन दान-पुण्य का बड़ा ही महत्व है। साथ दही-चूड़ा, गुड़, तिलकुट, तिलवा, तिलयुक्त विभिन्न प्रकार के लाई, आलू-गोभी-मटर-सेम-बैंगन-कदीमा-टमाटर से मिला जुला मशालेदार सब्जी, खिचड़ी, लड्डू, और मूंगफली भी खाते हैं। इसलिए इस दिन को खिचड़ी भी कहा जाता है। कई स्थानों पर मकर संक्रांति के दिन पवित्र नदियों या झीलों में स्नान करने की मान्यता हैं।
हर बारह साल में कुंभ मेले के साथ मकर संक्रांति मनाते हैं। जो दुनिया के सबसे बड़े सामूहिक तीर्थों में से एक है। इस अवसर से जुड़े उत्सवों को बिभिन्न स्थानों पर अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। यथा असम में माघ बिहू, पंजाब में माघी, हिमाचल प्रदेश में माघी साजी, जम्मू में माघी संग्रंद या उत्तरायण, हरियाणा में सकरत, राजस्थान में सकरत, मध्य भारत में सुकरत, तमिलनाडु में पोंगल, गुजरात में उत्तरायण, और उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में घुघुती या खिचड़ी, बिहार में दही चुरा, ओडिशा में मकर संक्रांति, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गोवा, पश्चिम बंगाल पौष संक्रांति या मोकोर सोनक्रांति, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, नेपाल में संक्रांति कहा जाता है।
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