विशेष संवाददाता, पुष्कर मिश्रा भारती: बिहार में राजनीतिक उठा पटक और कोलाहल के बीच निरंतर कई तरह की चर्चाएं और विश्लेषण चल रहे हैं। किस पार्टी की दोस्ती किसके साथ होगी या जाएगी इससे संबंधित बाजार गर्म है।युवा सामाजिक कार्यकर्ता तथा अंग इंडिया न्यूज के विशेष संवाददाता पुष्कर मिश्रा भारती लगातार पटना में बने हुए हैं और अंग इंडिया न्यूज़ की तरफ से लगातार सूचनाओं को प्रेषित कर रहे हैं। चाय की चुस्कियों और वहां ठंड के बीच गहमा गहमी करते आम जनों के बीच सर्वे कर 26 जनवरी की रात्रि तक का विश्लेषण उन्होंने प्रस्तुत किया है जो काफी कुछ फैसले को तय कर देता है। राजनीति क्षेत्र के दूसरे चाणक्य कहे जाने वाले बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एकबार फिर से पिछले कुछ सप्ताह के भीतर अपने कुछ औचक निर्णय से सबको चौंका रहे हैं, या यूं कहें तो सीधे शब्दों में एकबार फिर से वो बिहार सरकार में वर्तमान गठबंधन के साथी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने की तैयारी में लग चुके हैं, बस औपचारिकताएं मात्र ही बांकी रह गई हैं। बता दूं की 1970 के दशक से छात्र नेता की राजनीति शुरू कर सबसे अधिक बार मुख्यमंत्री का ताज पहनने वाले सूची में शुमार हो चुके मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एकबार फिर से अपने वर्तमान सहयोगी साथी राजद को छोड़ भाजपा में शामिल होने के लिए अपने पत्ते खोलते नजर आ रहे हैं। नीतीश कुमार 1985 में पहली बार विधायक बने और 1990 में जब जनता दल की बिहार में पहली बार सरकार बनी तो लालू यादव को मदद करने में नीतीश कुमार की अहम भूमिका रही थी। लेकिन 1994 में लालू नीतीश में पहली बार मतभेद हुई जिसके बाद नीतीश कुमार ने पाला बदलते हुए अपनी पार्टी समता पार्टी का गठन किया। लेकिन लगातार 2 वर्षों की मेहनत के बाद शन 1996 में एनडीए का हिस्सा बनने हुए भाजपा में शामिल हो गए जिसके बाद वो केंद्र में वाजपेई जी के सरकार में बतौर मंत्री भी बने।
फिर शन 2005 में बिहार में भाजपा की सरकार बनी जिसमें नीतीश कुमार बतौर मुख्यमंत्री पद पर प्रथम बार आशिन हुए जो क्रम अबतक निरंतर जारी है। पुनः एनडीए गठबंधन की सरकार ने 2010 का भी विधानसभा चुनाव जीता और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के रूप में दूसरी बार भी बने रहे। फिर 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को छोड़ नीतीश कुमार ने बिहार में अकेले चुनाव लडने का फैसला किया जिसमें उन्हें करारी हार मिली। फिर 2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू राजद हम और कांग्रेस पार्टी के महागठबंधन सरकार ने चुनाव जीती जिसके बाद नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए। लेकिन शन 2017 में एकबार फिर से नीतीश कुमार ने गठबंधन को तोड़ते हुए राजद को छोड़ भाजपा में शामिल होकर पुनः मुख्यमंत्री की कमान संभाली। पुनः 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की जीत हुई जिसके बाद नीतीश कुमार लगातार पांचवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद पर काबिज हुए। लेकिन 2022 में एकबार फिर से नीतीश कुमार एनडीए से अलग होते हुए पुनः राजद से गठबंधन किया और लगातार छठे बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और उपमुख्यमंत्री पद पर राजद के तेजस्वी यादव आशिन हुए। लेकिन इस सरकार की भी अभी 2 साल ठीक से पूरी भी नही हुई है की एकबार फिर से वर्ष 2024 के शुरुआती महीने जनवरी में ही नीतीश कुमार सब को चौंकाते हुए एनडीए में शामिल होने की अटकलें तेज कर दी है, जिसके बाद ये अनुमान लगाया जा रहा है की यदि भाजपा ने इन्हें बतौर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहने का आश्वासन देती है, तो यह एनडीए में एकबार फिर से शामिल होकर लगातार सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकते हैं।

लेकिन अब सवाल यह है कि आखिर अचानक से ऐसा क्या हुआ इंडिया एलायंस में जो नीतीश कुमार सबकुछ छोर एनडीए में शामिल होने के लिए बेताब हो उठे हैं। तो इसके कुछ मुख्य कारण जो सामने उभरकर आ रही है, वह निम्न है—
- पहला) इंडिया एलायंस में शामिल होने के पहले और बाद में भी नीतीश कुमार की आंतरिक रूप से प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी पेश करना, जिसे अन्य पार्टियों द्वारा कोई खासा तवज्जो ना देना।
- दूसरा) इंडिया एलायंस में अबतक प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के नाम का सस्पेंस बना रहना।
- तीसरा) इंडिया एलायंस में अबतक नीतीश कुमार को कोई बड़ा या सक्रिय जिम्मेदारी से वंचित रखना ये जानते हुए भी की इंडिया अलायंस के सूत्रधार नीतीश कुमार ही कहला रहे हैं।
- चौथा) लोकसभा चुनाव 2024 के लिए बिहार में सीट बटवारे में अबतक उधेरबुन की स्थिति बरकरार रहना और जदयू को इनके उम्मीद से बहुतों कम सीट देने जैसी अटकलों का तेज होना, जो नीतीश कुमार को स्वीकार नहीं।
- पांचवां) पिछले कुछ समय से राजद द्वारा नीतीश कुमार को राजद के अपेक्षा बिहार में जदयू का कम सीट होने की वजह से नीतीश कुमार पर अधिकांश निर्णयों को लेकर दबाव बनाना और ओवरटेक करने जैसी माहोल को जन्म देना भी नीतीश कुमार को अपनी कुर्सी खतरे में दिखाई पड़ने लगी है।
बहरहाल उपरोक्त सभी घटना क्रम को यदि आप बारीकी से अध्ययन करें तो यही अदल बदल की जो कहानी रही है नीतीश कुमार की वर्षों से, जिसके कारण इन्हें बिहार का एक चर्चित शब्द पलटू चाचा के भी नाम से जाना जाता रहा है। और एकबार फिर से अब बिहार के पलटू चाचा यानी की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अबतक के घटनाक्रम को पुनः दोहराते और तेज करते हुए राजद छोर एनडीए में शामिल होने की संभावना को प्रबल कर दी है, जिससे की पटना से लेकर दिल्ली तक की राजनीतिक गलियारों वाली तमाम वातावरण इस भीषण शीतलहर में भी गर्म होती नजर आ रही है।हालांकि एक बड़ा सवाल ये भी है की इसबार नीतीश कुमार को भाजपा किन किन शर्तों पर NDA में शामिल करने पर सहमति जताती है, क्योंकि आगे में दो बड़े—बड़े चुनाव होने वाले हैं। इस साल वर्ष 2024 में लोकसभा चुनाव और आगामी वर्ष 2025 में बिहार विधानसभा चुनाव। लेकिन ये अटकलें इसलिए भी अब तेज होती दिखने लगी है क्योंकि आज 26 जनवरी के गणतंत्र दिवस के मौके पर भी पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बगल वाली कुर्सी खाली देखी गई, और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव दूर में लगे अन्य तीसरे कुर्सी पर बैठे नजर आए। उसी प्रकार आज ही संध्या समय भी जब राजभवन में अचानक से माननीय राज्यपाल महोदय के साथ चाय पर मुख्यमंत्री जी ने चर्चा करने को राजभवन पहुंचे तो वहां भी तेजस्वी यादव नदारद पाए गए, जिसके जवाब में नीतीश कुमार ने यह कहते हुए अन्मनस्य भाव से रुख को बदल दिया की उपमुख्यमंत्री जी अनुपस्थित हैं तो मुझे क्या पता की वो क्यों नहीं आए हैं। जबकि इस मौके पर नेता प्रतिपक्ष भाजपा के विजय सिंहा, हम के जीतन राम मांझी जैसे बड़े नेताओं का तमाम जमावड़ा देखी गई।
और राजभवन से लौटते ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जदयू के अपने वरिष्ठ नेताओं के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक किया, जिसके कुछ ही देर बाद दर्जनों आईएएस अधिकारियों का तबादला करने की घोषणा भी कर दी, जिसमें पटना के वर्तमान जिलाधिकारी श्री चंद्रशेखर सिंह को मुख्यमंत्री कार्यालय का विशेष सचिव का प्रभार देते हुए श्री कपिल अशोक को पटना का नया जिलाधिकारी नियुक्त किया गया है। साथ ही अब 28 जनवरी सुबह 10 बजे जदयू के सभी विधायकों की एक अहम बैठक बुलाई गई है, जिसके बाद नीतीश कुमार की ओर से एनडीए में शामिल होने अथवा नहीं होने की तमाम सस्पेंस दूर हो जाएंगी ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है। लेकिन नीतीश कुमार के अचानक से इंडिया अलायंस को छोड़कर एनडीए में शामिल होने के निर्णय से इंडिया एलायंस को लोकसभा चुनाव से पहले बहुत ही बड़ा नुकसान कहा जा सकता है। वहीं नीतीश कुमार के एनडीए में शामिल होने के बाद एक बार फिर से बिहार में एनडीए द्वारा अपनी सरकार बनाने की राह और भी अधिक आसान और साफ व सहज होती नजर आने लगी है। बहरहाल अब देखना बेहद ही दिलचस्प होगा कि 28 जनवरी को पटना में जदयू विधायकगण की अहम बैठक में क्या क्या निर्णय निकलकर सामने आते हैं और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का अगला स्टंट और एक्शन क्या होता है।