पूर्णिया : बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के माननीय कुलपति डॉ. डी.आर. सिंह के निर्देशन में यहां स्थित भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय में विकसित भारत @ 2047 अंतर्गत राष्ट्रीय मिशन ऑन एग्रीकल्चरल एक्सटेंशन एंड टेक्नोलॉजी के तहत सब-मिशन ऑन एग्रीकल्चरल एक्सटेंशन (आत्मा योजना) के अंतर्गत आत्मा, मधुबनी द्वारा प्रायोजित मखाना-सह-मत्स्य उत्पादन तकनीक विषय पर पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का भव्य समापन समारोह आयोजित किया गया।
प्रमाण पत्र वितरण-सह-समापन समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित सयुक्त निदेशक कृषि पूर्णिया मंडल श्री नरेंद्र कुमार लोहानी ने कहा कि मछली एक उत्तम पोषक आहार है और मत्स्य पालन में बेरोजगारों के लिए रोजगार की अपार संभावनाएं निहित हैं। उन्होंने मछली बीज संचयन, आहार प्रबंधन और समेकित मत्स्य-कृषि प्रणाली पर विस्तार से प्रकाश डाला।
श्री लोहानी ने कृषि शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को एक सुखद संकेत बताया। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से महिलाओं की खेती में महत्वपूर्ण भूमिका रही है, उसी तरह आने वाले समय में कृषि के तकनीकी विकास में भी महिलाओं का योगदान बढ़ेगा और वास्तविक रूप में चरितार्थ होगा।
जिला मत्स्य पदाधिकारी श्री लालबहादुर साफी ने मधुबनी जिले के मखाना उत्पादक किसानों को मछली में लगने वाले विभिन्न रोगों के समुचित प्रबंधन और देशी मांगुर की खेती के बारे में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कार्प मछलियों की विशेषताओं और उनके पालन विधि के बारे में भी बताया। साथ ही उन्होंने बताया कि ग्रास कार्प, कॉमन कार्प और सिल्वर कार्प मछली का भी बाजार में काफी मांग है। ये मछलियां भारतीय मेजर कार्प मछलियों जैसे कतला, रोहू और मृगल के साथ भी पाली जा सकती हैं और इससे अच्छा मुनाफा भी मिलता है। उन्होंने किसानों को यह भी बताया कि अगर मछलियां हवा में सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आएं तो समझना चाहिए कि तालाब में ऑक्सीजन की कमी है। ऐसी स्थिति में तालाब का पानी बदलना चाहिए या पंप से तालाब की तलहटी के पानी को फव्वारे की तरह तालाब में फेंकना चाहिए। यदि 3-4 दिनों तक लगातार बादल छाए रहें या बारिश होती रहे तो तालाब में चूने का उपयोग करना चाहिए। साथ ही यदि मछलियां पानी की सतह पर समूह में घूम रही हों या किसी बीमारी की आशंका हो तो तालाब में चूना डालना चाहिए और नजदीकी मत्स्य विशेषज्ञ, कृषि विज्ञान केंद्र या बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर से संपर्क करना चाहिए।
उपनिदेशक मत्स्य विभाग पूर्णिया श्री आभास चंद्र मंडल ने उपस्थित किसानों को बायोफ्लॉक विधि से मछली पालन की नई तकनीक के बारे में बताया, जिसे अपनाकर किसान मुनाफा कमा सकते हैं। उन्होंने समेकित मत्स्य पालन की आर्थिक व्यवहार्यता के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी। साथ ही उन्होंने सरकार द्वारा चलाई जा रही ‘जल जीवन हरियाली’ योजना के बारे में भी किसानों को अवगत कराया। मंडल ने किसानों को कम लागत में तालाब और कृत्रिम तालाब की व्यवस्था कर मछली उत्पादन करने की तकनीकों की भी विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि मिथिला क्षेत्र की पहचान मत्स्य पालन ही रहा है क्योंकि मछली गरीब और अमीर दोनों के लिए पोषण युक्त भोजन सामग्री है।
मखाना वैज्ञानिक डॉ. अनिल कुमार ने उपस्थित मखाना किसानों को मखाना की औषधीय और पोषण गुणवत्ता के बारे में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि विदेशों में मखाना के बीज के बीजावरण से मधुमेह जैसे रोगों के लिए औषधियां बनाई जा रही हैं, जबकि भारत में इसका उपयोग केवल लावा बनाने के समय ईंधन के रूप में किया जाता है। उन्होंने बताया कि बिहार में केवल मखाना के लावे का ही उपयोग होता है और इसके अन्य भागों को बिना उपयोग किए छोड़ दिया जाता है, जो उचित नहीं है। मृदा विज्ञानी डॉ. पंकज कुमार यादव ने मखाना प्रसंस्करण, मूल्यवर्धन, पैकेजिंग और विपणन के बारे में किसानों को जानकारी दी।
प्रशिक्षण कार्यक्रम के मुख्य समन्वयक मखाना वैज्ञानिक डॉ. अनिल कुमार ने प्रमाण पत्र वितरण समारोह में बताया कि इस पांच दिवसीय प्रशिक्षण में मधुबनी जिले के पंडौल, मधवापुर, बासोपट्टी, झंझारपुर, लौकही, राजनगर, जयनगर, विस्फी, मधेपुर, खुटौना, अंधराठाढ़ी, लखनौर, घोघड़ाडीह, फुलपरास, बाबूबड़ही, खजौली, कलुआही, हरलाखी, बेनीपट्टी, लदनिया, मधुबनी सहित कुल 28 किसान शामिल हुए। मखाना-मत्स्य पालन से संबंधित कुल 20 विषयों पर विभिन्न संस्थानों के विशेषज्ञों द्वारा किसानों को जानकारी दी गई।
समारोह की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. पारस नाथ ने की। उन्होंने कोसी क्षेत्र में मखाना और मत्स्य पालन की अपार संभावनाओं पर प्रकाश डाला। साथ ही उन्होंने मखाना की फसल में समेकित कीट प्रबंधन के बारे में विस्तृत जानकारी दी।