सहरसा, अजय कुमार: शराब के नशे में धुत इंसान क्या क्या गलती कर सकता है या यूं कहें क्या नहीं कर सकता है। शराब की लत एक इंसान को नहीं बल्कि पूरे परिवार को तबाह कर देती है। इसका सबसे बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ता है। घर की औरतों को। लेकिन औरत अगर ठान ले तो वह अपने परिवार को संभाल कर समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बन सकती है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है सहरसा जिले के कहरा प्रखंड के तुलसियाही टोला मुरली बसंतपुर बिहरा की रहने वाली मिलन दीदी। उनके लिए नशा मुक्ति को लेकर आवाज उठाना बहुत कठिन कार्य था। दीदी की अच्छी पढ़ाई लिखाई होने के बावजूद पति के द्वारा हर बात को लेकर रोक टोक किए जाने के कारण वह कुछ भी कार्य नहीं कर पा रही थी। वही पति कि शराब की लत से बहुत ज्यादा परेशान रहती थी। 5 बेटी और एक बेटा कुल 6 बच्चों की जिम्मेदारी और पति की शराब की लत से परेशान रहती थी। पति अच्छा काम करते थे। प्रतिदिन ₹500 की आमदनी जरूर होती थी। लेकिन शराब की ऐसी लत कि कभी-कभी सभी रुपए का शराब पीकर घर आ जाते थे। मन ऐसा विचलित होता था कि शराबी को देख कर उसे पीटने का मन करता रहता था। 1 अप्रैल 2016 का ऐतिहासिक दिन था। जब बिहार के मुख्यमंत्री द्वारा बिहार में शराब को पूर्णतया बंद कर दिया गया।
कुछ दिनों तक तो पति ने चोरी-छिपे पी लेकिन अब नहीं पीते हैं। जो रुपया कमाते हैं घर पर देते हैं और बच्चों की खुशहाली में खर्च करते हैं। उसी से मैंने प्रण लिया की अब मैं किसी को भी शराब की वजह से बर्बाद नहीं होने दूंगी। शराबबंदी के बाद सभी घरों को जीविका से जोड़ने की मुहिम तेज की गई। इसी मुहिम में शराबबंदी के साथ-साथ आजीविका संवर्धन के लिए मैं जीविका से जुड़ी। मैंने अपने पति को समझाया कि 6 बच्चों की जिम्मेदारी है। बच्चे बड़े हो रहे हैं। पढ़ना चाहते हैं। मैं चाहती हूं कि मैं भी कमाने में आपकी मदद करूं तो वह भी घर पर रहकर। पति को मैंने बताया कि मखाना की पैकिंग का व्यवसाय करना चाहती हूं। व्यवसाय के लिए मिलन दीदी को जीविका द्वारा प्रथम बार ₹40000 दिया गया। पुनः व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए ₹70000 और दिया गया। शुरुआती 1 वर्ष में दीदी का मखाना 10 क्विंटल तक हो जाता था। जो अब 40 से 50 क्विंटल तक हो चुका है। आज दीदी की वार्षिक 60 से ₹70000 तक की आमदनी हो जाती है। जीविका के सहयोग से मिलन दीदी के जीवन में बदलाव होने लगा है। वह अपने कड़ी मेहनत से अपनी आजीविका को आगे बढ़ा रही है। मखाना पैकिंग की बिक्री अच्छा चलने लगा है। एक सौ ग्राम 200 ग्राम की पैकिंग भी अपने घर पर करने लगी है। वही उन्होने कहा कि सहरसा के विभिन्न बाजारों में अपना मखाना का पैकिंग को देख कर बहुत खुशी होती है। सभी बच्चे पढ़ाई लिखाई कर रहे हैं।
Tiny URL for this post: