- एसआरएस की रिपोर्ट: बिहार में शिशु मृत्यु दर आ चुका है राष्ट्रीय औसत से भी नीचे
- डॉक्टरों व नर्सों का नियमित प्रशिक्षण, मोबाइल ऐप से होता है निरंतर अनुश्रवण
- “दीदी की रसोई” के मार्फत माताओं को मिलता है नि:शुल्क भोजन और नाश्ता
- किर्लोस्कर इंडिया करती है प्रत्येक एसएनसीयू के उपकरणों का मेंटेनेंस व रिपेयर
- एसएनसीयू में सुविधाओं को और बेहतर करने का प्रयास जारी: डॉ. बी. पी. राय
पटना: बिहार में शिशु मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी आने में एसएनसीयू की बड़ी और असरकारी भूमिका है. सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे(एसआरएस) की मई, 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में बिहार का शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत 28 से भी नीचे 27 पर रहा. राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी (शिशु स्वास्थ्य) डॉ. बी. पी. राय बताते हैं कि एसएनसीयू में समुचित मानव संसाधन की तैनाती, आधारभूत संरचना के विकास, अनुश्रवण और रोगियों के देखरेख की व्यवस्था में आये तेजी से सकारात्मक बदलाव और उन्नयन ने इसे संभव बनाने में योगदान किया है. वर्ष 2008-09 में सूबे में एसएनसीयू (स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट) की स्थापना शुरू हुई. डॉ. राय बताते हैं कि आज सूबे के लगभग सभी सदर अस्पतालों में यह ईकाई कार्यरत है. इसमें शून्य से लेकर 28 दिनों तक के गंभीर रूप से बीमार नवजातों को भर्ती कर उनका इलाज किया जाता है. डॉ. राय ने बताया कि यहाँ ऐसे नवजातों के नि:शुल्क इलाज के अलावा उनकी माता के लिए सुबह के नाश्ते के साथ दिन और रात के भोजन का नि:शुल्क इंतजाम भी शामिल है. भोजन और नाश्ता अस्पताल में कार्यरत “दीदी की रसोई” से मिलती है. डॉ. राय ने बताया कि शिशु मृत्यु दर में कमी का यह अकेला कारण नहीं हैं. इसमें मातृ-शिशु स्वास्थ्य के लिए केंद्र और राज्य सरकार की कई अन्य योजनाएँ भी हैं, जिनके समन्वित प्रयास से बिहार इस उपलब्धि तक पहुंच पाया है.
- स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट को हर स्तर पर किया गया सुदृढ़ : डॉ. बी. पी. राय
डॉ. राय बताते हैं कि एसएनसीयू की सुविधा को निरंतर बेहतर किया गया है. यहाँ कार्यरत चिकित्सकों एवं स्टाफ नर्स को नियमित अंतराल पर प्रशिक्षित किया जा रहा है. राज्य स्तर पर एक मॉनिटरिंग मोबाइल एप तैयार किया गया है. इससे क्षेत्र की रिपोर्ट, एसएनसीयू में रोज के शिशुओं के एडमिशन, उपचार, रेफ़रल, लामा (बिना चिकित्सीय परामर्श के शिशु को ईकाई से लेकर जाना) एवं मृत्यु के आंकड़ों का नियमित अनुश्रवण करना आसान हुआ है. उन्होंने बताया कि एसएनसीयू में कार्यरत स्वास्थ्यकर्मियों के लिए एसओपी तैयार किया गया है. इसमें मानक तय किये गए हैं और क्षेत्रीय कार्यक्रम प्रबंधक को ईकाई का नियमित भ्रमण कर हर 15 दिन में सभी निर्धारित मानकों पर रिपोर्ट भेजी जानी है.
- उपकरणों का रखा जा रहा ध्यान
राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी ने बताया कि राज्य सरकार ने एसएनसीयू के उपकरणों की देखभाल और रखरखाव के लिए किर्लोस्कर इंडिया से करार किया है. अब किसी भी एसएनसीयू यूनिट में स्थापित उपकरणों की मेनटेनेंस एवं रिपेयर किर्लोस्कर इंडिया नियमित कर रही है. इससे वहाँ भर्ती शिशुओं को बेहतर उपचार मुहैय्या कराने में मदद मिल रही है.
- राष्ट्रीय औसत से नीचे है बिहार में शिशु मृत्यु दर
उल्लेखनीय है कि सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे की मई, 2022 की रिपोर्ट कहती है कि बिहार ने शिशु मृत्यु दर में अपनी स्थिति में बड़ा बदलाव किया है. साल 2015 में प्रति एक हजार जीवित जन्म में शिशु की मौत की संख्या 42 थी. इसके बाद से इसमें निरन्तर कमी आयी. साल 2016 में यह आँकड़ा घटकर 38 पर आया तो 2017 में 35, 2018 में 32, 2019 में 29 और वर्ष 2020 में घटकर 27 पर आ गया. यहाँ ध्यान देने की बात है कि वर्ष 2020 में जब बिहार में शिशु मृत्यु का आंकडा 27 पर पहुँचा तब राष्ट्रीय शिशु मृत्यु दर 28 था. यानी बिहार इस मामले में राष्ट्रीय औसत से भी नीचे आ गया.
- एसएनसीयू में भर्ती होने वाले नवजात के मानक:
- 1800 ग्राम या इससे कम वजन के नवजात
- गर्भावस्था के 34 सप्ताह से पूर्व जन्मे बच्चे
- जन्म के समय गंभीर रोग से पीड़ित नवजात (पीलिया या कोई अन्य गंभीर रोग)
- जन्म के समय नवजात को गंभीर श्वसन समस्या (बर्थ एक्स्फिसिया)
- हाइपोथर्मिया से ग्रसित नवजात
- नवजात में रक्तस्राव का होना
- जन्म से ही नवजात को कोई गंभीर स्वास्थ्य समस्या रहना
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