हरओर जब फसलें बो दी जाती हैं, तब बीच की फसलें जब तैयार होती हैं, तब ट्रेक्टर उसमें नहीं जात पातीं, तब बैलों से खेत की जुताई ही एक मात्र सहारा होती है
पूर्णिया, अभय कुमार सिंह: कहते हैं लाख विज्ञान अपनी तकनीकि आगे चली गई हो,परंतु आज भी पारंपरिक तरीके से खेती या फिर उसमें उपयुक्त होनेवाले औजार आज भी खेती को जीवन देता नजर आ रहा है। ऐसा नजारा यहां प्रत्येक फसलों के मौसम मेंदेखा जा सकता है। अभी यहां मक्का, आलू, तेलहन जैसी फसलों का समय है। प्रायः रबी फसलों में अनेक तरह की फसलें उपजायी जाती हैं, जिससे कभी-कभी कोई फसल पहले तैयार हो जाती हैं, जिससे उस जमीन पर फिर से अन्य कोई फसल लगाना आसान नहीं होता है, क्योंकि उस खेत में जाने के लिए ट्रेक्टरों के लिए कोई रास्ता नहीं होता है। खासकर रबी फसल में आलू तैयार हो रही है, तेलहन भी कहीं-कहीं तैयार होनेवाली है, इस परिस्थिति में वहां पुनः अगली फसल के लिए खेत को जाता जा सके।
तब उस समय ये बैल सेखेत की जुतायी संजीवनी साबित होती है। यद्यपि अब गांवों में महज कुछ ही हल जोतनेवाले हलवाहे मिलते हैं, कारण है कि प्रायः अब सभी लोग ट्रक्टरों से ही खेत जोतवाना पसंद करते हैं, मजबूरी में ही लोग हलवाहे से खेत जुतवाते हैं। अब बैलों को खिलाना, पोसना मंहगा पडता चला जा रहा है। हमेशा खेत की जुताई नहीं होती है, इसलिए हलवाहे इस पारंपरिक तरीके को छोडते चले जा रहे हैं। कुल मिलाकर आज भी ये हलवाहे यहांके किसानों के लिए संजीवनी बने हुए हैं। देखें यह संजीवनी किसानों के लिए कबतक संजीवनी बनी रहती है।