- आज भी कई ऐसे विद्यालय हैं, जहां विद्यालय या तो समय से खुलता ही नहीं है, या फिर सिर्फ शिक्षक हाजिरी बनाने के लिए ही खोलते हैं
- ऐसा उदाहरण पतकेली गांव का प्राथमिक विद्यालय पेश कर रहा है
पूर्णिया, अभय कुमार सिंह: सरकार लाख शिक्षा में गुणात्मक सुधार को लेकर कदम उठाये, परंतु इसका प्रभाव यहां के शिक्षकों पर पडता नहीं दिख रहा है। ऐसा ही उदाहरण प्रखंड के सबसे गरीब गांव माना जानेवाले पतकेली गांव स्थित प्राथमिक विद्यालय प्रस्तुत करता दिख रहा है। मंगलवार को इस विद्यालय के बाहर स्कूली बच्चे तो दिखे,, परंतु विद्यालय बंद रहने की वजह से परेशान भी दिखे। यह बता दें कि रूपौली एवं भवानीपुर प्रखंड क्षेत्र के दो भागों में बंटा पतकेली गांव की आवादी लगभग सौ प्रतिशत मुस्लिम बहुल है। इस गांव की गिनती प्रखंड के सबसे गरीब गांवों में होती है। यहां के लोग प्रायः गरीब एवं मजदूर वर्ग से आते हैं। इस विद्यालय के बारे में ग्रामीण बताते हैं कि उनका गांव मजदूरों का गांव है। यहां शिक्षा नाम की कोई चीज नहीं है। बस एक विद्यालय है, जहां वे अपने बच्चों को पढने के लिए भेजते हैं, परंतु दूर्भाग्य है कि बच्चे बिना पढे ही घर वापस चले आते हैं। यहां के शिक्षक हमेशा ही बिना बताए अनुपस्थित रहते हैं। यहां तीन शिक्षक कार्यरत हैं। एक तो यह विद्यालय समय से कभी खुलता नहीं है, अगर खुलता भी है तो बस खानापूर्ति कर हाजिरी बनाकर शिक्षक चले जाते हैं।
सोमवार को भी विद्यालय प्रधान अनुपस्थित थे, जिसके कारण विद्यालय दोपहर तक बंद रहा। सभी शिक्षक कोई पूर्णिया तो कोई दयालपुर से आदि जगहों से आते हैं। आने के बाद भी उन्हें बच्चों की पढाई से मतलब नहीं रह जाता है, वे बस बातचीत में मसगुल रहते हैं। समझ में नहीं आता है कि उन गरीबों के बच्चे कैसे समुचित शिक्षा पा सकेंगे। मौके पर शनिवार को साढे नौ बजे तक विद्यालय नहीं खुल पाया था, जबकि विद्यालय परिसर में चार बच्चे मौजूद थे। पूछने पर तीसरी कक्षा की छात्रा साजिदा ने बताया कि शिक्षक हमेशा ही लेट से आते हैं, जिसके कारण वेलोग कभी-कभी घर लौट जाते हैं। कुल मिलाकर इस विद्यालय के मालिक अब भगवान ही बचे हैं, इन्हें देखनेवाला कोई नहीं दिखता है, देखें इन गरीबों के बच्चों को कबतक समुचित शिक्षा मिल पाती है। वही इस सम्बन्ध में बीईओ संजय कुमार सिंह कहते है वे इसकी जांच कर कार्रवायी करेंगे।
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