पूर्णिया: भारतवर्ष में युगों य़ुगों से श्रीराम का नाम गूंज रहा है। श्रीराम हिन्दूओं के अराध्य हैं,भारतीय सभ्यता और संस्कृति के आधार हैं। ना जाने कितने ही पर्व त्योहार श्रीराम से जुड़े हैं। वैसे इन दिनों अयोध्या में भी त्योहार का वातारण है, तो क्यों ना हम भी अयोध्या के इतिहास से लेकर वर्तमान तक की एक झलक लें। आज हम बात करेंगे ऐतिहासिक नगरी अयोध्या के स्थापना की। इस समय सबकी नजरें अयोध्या पर टिकी हैं। वर्षों के इंतजार के बाद श्रीराम लला अयोध्या में विराजमान होने जा रहे हैं। 22 जनवरी को श्रीराम लला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है।जिसको लेकर पूरे देश का माहौल राममय हो गया है। हो भी क्यों ना, अयोध्या जिसका धार्मिक महत्व है। कई शताब्दी से ये स्थली हिंदूओं का प्रमुख तीर्थ स्थल रही है। अयोध्या भारत के प्राचीन नगरों में से एक है। वेदों में अयोध्या को ईश्वर की नगरी बताया गया है, वहीं इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। अयोध्या के स्थापना की कहानी पौराणिक है। हिंदू पौराणिक मान्याताओं के अनुसार अयोध्या सप्त पुरियों में से एक है। ये सप्तपुरी हैं अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांची, अंवतिका और द्वारका ये सभी सातों मोक्षदायिनी और पवित्र नगरियां यानी पुरियां हैं। चार वेदों में पहले अथर्ववेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर माना है। उसी अयोध्या में भगवान राम का जन्म हुआ था। अयोध्या नगरी सरयू नदी के किनारे पर बसा हुआ है। बाल्मिकी रामायण में अयोध्या का विस्तार से वर्ण है। रामायण के अनुसार सरयू नदी के किनारे बसे अयोध्या की स्थापना सूर्य पुत्र मनु ने थी। अयोध्या की लंबाई 12 योजन और चौड़ाई 3 योजन थी। एक योजन में 12 किमी होते हैं, इसका अर्थ हुआ अयोध्या की सीमा 144 किमी लंबी और 36 किमी चौड़ी थी।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार अयोध्या कई शताब्दियों तक सूर्यवंश की राजधानी रही। सूर्यवंश की स्थापना मनु के पुत्र इक्ष्वाकु ने की थी। मनु का जन्म लगभग 6673 ईसा पूर्व में हुआ था। मनु ब्रह्रााजी के पौत्र कश्यप की संतान थे। मनु के 10 पुत्र हुए जिनमें- इक्ष्वाकु प्रतापी राजा हुए। इक्ष्वाकु कुल में कई प्रतापी राजा, मुनि और भगवान हुए है। इक्ष्वाकु कुल में भगवान राम का जन्म हुआ था। महाभारत काल तक अयोध्या पर सूर्यवंसी राजाओं का शासन रहा। स्कंद पुराण के अनुसार जिस तरह से काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी है उसी प्रकार अयोध्या भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र पर विराजमान है। पौराणिक कथा के अनुसार मनु ब्रह्रााजी से अपने लिए एक नगर के निर्माण की बात को लेकर उनके पास पहुंचे, तब ब्रह्रााजी जी उन्हें भगवान विष्णु के पास भेजा। तब भगवान विष्णु ने मनु के लिए साकेतधाम का चयन किया। साकेतधाम के चयन के बाद ब्रह्रााजी और मनु के साथ विष्णुजी ने देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा को भेज दिया। विष्णु जी ने महर्षि वशिष्ठ को भी भेजा। वशिष्ठ मुनि ने सरयू नदी के किनारे लीला भूमि का चयन किया। भूमि चयन के बाद देवशिल्पी नगर के निर्माण की प्रकिया आरंभ की। रामायण में अयोध्या का जिक्र कौशल जनपद के रूप में भी किया गया। भगवान राम के जन्म के समय इस नगर को अवध के रूप जाना जाता था। अयोध्या का एक नाम साकेत भी है। शताब्दीयों से खुद में गौरवशाली इतिहास को लपेटे इस नगर का अर्थ अजेय भी है। यानी जिसे जीता नहीं जा सकता। कहते हैं कि भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने एक बार पुन: राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया था। इसके बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इसका अस्तित्व बरकरार रहा। महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़-सी गई लेकिन उस दौर में भी श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व सुरक्षित था और लगभग 14वीं सदी तक बरकरार रहा। तथ्यों के मुताबिक, बाबर के आदेश पर सन् 1527-28 में अयोध्या में राम जन्मभूमि पर बने भव्य राम मंदिर को तोड़कर एक मस्जिद का निर्माण किया गया। जिसके बाद शुरू हुआ अयोध्या का विवाद। जो करीब पांच सौ सालों तक चला।