पूर्णिया: विकसित भारत अभियान @2047 अंतर्गत दिनांक 30.01.2024 को भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय, पूर्णियाँ में महात्मा गाँधी की पूण्य तिथि को शहीद दिवस कार्यक्रम का आयोजन के रूप में आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन महाविद्यालय की राष्ट्रीय सेवा योजना ईकाई पदाधिकारी डा0 पंकज कुमार यादव की देख-रेख में किया गया साथ ही साथ स्वच्छता एवं कुष्ट रोग निवारण कार्यक्रम भी आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के सह अधिष्ठाता सह प्राचार्य डा॰ पारस नाथ किया। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ मुनेष्वर यादव, विभागाध्यक्ष, राजनिति शास्त्र विभाग, ललित नारायण मिथिला विष्वविद्यालय, कामेष्वर नगर, दरभंगा की उपस्थिति रही। इस कार्यक्रम में सभी अतिथियों को पुष्पगुच्छ देकर जिला युवा अधिकारी द्वारा स्वागत किया गया। इस अवसर पर प्राचार्य ने सबसे पहले स्वागत भाषण प्रस्तुत किया तथा अपने सम्बोधन में महात्मा गाँधी के जीवन बृŸा पर चर्चा करते हुए बताया कि महात्मा गाँधी का अवसान आज ही के दिन 30 जनवरी 1948 को हुआ था। उन्होंने ये भी बताया कि गाँधी जी की मृत्यु के बाद पं॰ जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि एक युग के प्रकाश का समापन हो गया। गाँधी जी ने स्वयं को एक अति जिज्ञासु इंसान की भाँति खुद को कदम-दर-कदम गढ़ा था। बालपन में वे बेहद शर्मीले स्वभाव के थे।
गाँधी जी ने दक्षिण-अफ्रीका में अग्रेज हुक्मरानों के अत्याचार देखे तो वे चुप न बैठ सके। औपनिवेशिक माहौल में पनपे गाँधी जी ने अपनी आधी जिंदगी समाज से सीखने और बदले में उसे जेहनी तौर पर आजाद बनाने में लगा दी। आज के दिन ही नई दिल्ली में नाथू राम गोडसे ने उनकी देह को गोलियों से क्षत-विक्षत कर दिया था, पर क्या गोडसे गाँधी जी को मार सका, यकीनन नहीं। गाँधी जी आज भी धरती के अनगिनत लोगों के विचारों मे जिंदा है। महात्मा गाँधी अपने पूरे जीवन काल में देश एवं समाज सेवा का कार्य किया इसलिए भारत ही नही ंपूरा विश्व उन्हें एक महान नेता एवं देश भक्त के रूप में याद करता है। भारत की स्वतंत्रता संघर्ष की लड़ाई में उनके योगदान को कभी भुला नहीं पाएगा। गाँधी जी का मानना था, की स्वच्छता में ईश्वर निवास करते है, भारत के गाँवों और किसानों के बारे में गाँधी जी कहा करते थे कि भारत की आत्मा गाँवो में रहती है। 8 अगस्त 1942 को गाँधी जी ने एतिहासिक अंग्रेजों भारत छोड़ो प्रस्ताव को कांग्रेस से पास करवाया, जिसमें उन्होने करो या मरो का नारा दिया। गाँधीजी केवल राजनीतिक स्वतन्त्रता नहीं चाहते थे, अपितु जनता की आर्थिक, समाजिक और आत्मिक उन्नति चाहते थे।
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