पूर्णिया: विकसित भारत @2047 अंतर्गत भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय, पूर्णियाँ में अध्यनरत कृषि छात्र/छात्राओं के व्यक्तित्व विकास हेतु नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म दिवस देश प्रेम दिवस-सह-पराक्रम दिवस के रूप मे कार्यक्रम का आयोजन महाविद्यालय की राष्ट्रीय सेवा योजना ईकाई की देख-रेख मे किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के सह अधिष्ठाता सह प्राचार्य डा॰ पारस नाथ किया। इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राचार्य डा॰ पारस नाथ के साथ शिक्षकों, वैज्ञानिकों, छात्र-छात्राओं एवं शिक्षकेतर कर्मचारियो ने सुभाष चन्द्र बोस के तैलचित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए। इस अवसर पर प्राचार्य डा॰ पारस नाथ ने अपने सम्बोधन मे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जीवन पर चर्चा करते हुए बताया कि सुभाष चन्द्र बोस जो पूरे देश में नेताजी के नाम से लोकप्रिय थे, उनका जन्म 23 जनवरी 1897 में कटक के उड़िसा में हुआ था। उन्होनें 1919 ई॰ में कलकता विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 1920 में उनका चयन भारतीय जनपद सेवा में हो गया परन्तु 1921 में महात्मा गाँधी द्वारा शुरू किये गये असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर उन्होने भारतीय जनपद सेवा की अपनी नौकरी छोड़कर राजनीति में प्रवेश किया, तथा 1921 ई॰ में प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आने पर उन्होनें कलकता में उनके स्वागत का वहिस्कार किया परिणाम स्वरूप उन्हे 6 महीने के लिए जेल जाना पड़ा। इसके बाद नेताजी अपनी राजनीतिक गतिविधियों के लिए कुल करीब 11 बार जेल गए। बताया कि सुभाष चन्द्र बोस नेे तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा एवं दिल्ली चलों का नारा भी दिया। बताया कि गाँधी जी द्वारा असहयोग आन्दोलन बीच में रोक देने के कारण सुभाष चन्द्र बोस, गाँधीजी से दुखी हुए और कालान्तर में वे देशबन्धु चितरन्जन दास के करीब आये तथा उनके विश्वासपात्र एवं अनन्य सहयोगी बनने का गौरव प्राप्त किया।
1923 ई॰ में सी॰आर॰दास द्वारा गठित स्वराज्य दल का उन्होने समर्थन किया। 1928 में प्रस्तुत नेहरू रिपोर्ट के विरोध में नेताजी ने एक अलग पार्टी इण्डिपेन्डेन्ट लीग की स्थापना की। 1938 में कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन में नेताजी को पहली बार कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। दूसरी बार 1939 में त्रिपुरी में कांग्रेस के अधिवेशन में गाँधी जी के विरोध के बाद भी अध्यक्ष पद के लिए चुन लिया गया। उन्होनें पट्टाभि सीतारमैया को पराजित किया था। पराजय के बाद गाँधीजी ने कहा था यह पट्टाभि सीतारमैया की हार नहीं मेरी हार है। नेताजी गाँधीजी का बहुत सम्मान करते थे इसलिए उन्होनें अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया और फारवर्ड ब्लाक नामक एक नई पार्टी गठित किया। सुभाष चन्द्र बोस का देशवासियों से यही कहना कि भूलना नहीं की दासता मनुष्य के लिए सबसे बड़ा पाप है। 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के प्रारम्भ होने पर सरकार ने उन्हे कलकता में उनके निवास पर नजरबन्द कर दिया। उचित अवसर पाकर 26 जनवरी 1941 को चमत्कारिक ढंग से वे घर से गायब हो गये और वे अफगानिस्तान होते हुए जर्मनी पहूँचे जहाँ वे हिटलर से मुलाकात की। जर्मनी से वे जापान गये। जर्मनी में उन्होनें जर्मनी एवं इटली में बन्दी के रूप में रहे भारतीय सैनिकों को एकत्र कर मुक्ति सेना का गठन किया। इसका प्रधान कार्यालय ड्रेसडन (जर्मनी) में बनाया गया। रंगून के जुबली हॉल में सुभाष द्वारा दिया गया वह भाषण सदैव के लिए इतिहास के पन्नों में अंकित हो गया, जिसमें उन्होनें कहा था कि स्वतन्त्रता बलिदान चाहती है, आपने आजादी के लिए बहुत त्याग किया है, किन्तु अभी अपने प्राणों की आहुति देना शेष है आजादी को आज हम अपने शीष फूल चढ़ा देने वाले पागल पुजारियों की आवश्यकता है, ऐसे नौजवानों की आवश्यकता है जो अपना सिर काटकर स्वाधीनता देवी की भेंट चढ़ा सकें।
जापान में रह रहे भारतीय क्रान्तिकारी सहियोगी रासबिहारी बोस ने टोकियो में आयोजित एक सम्मेलन में आजाद हिन्द फौज और भारतीय स्वतन्त्रता लीग की घोषणा की। इस सेना में जापान में बन्दी 60,000 भारतीय सैनिकों को शामिल किया गया। 20 जून 1943 को सुभाष चन्द्र बोस को जर्मनी से टोकियो बुलाकर इस सेना की जिम्मेदारी सौपी गयी। इस सेना के लोग सुभाष चन्द्र बोस द्वारा दिये गये जय हिन्द के नारे से एक दूसरे का स्वागत करते थे। इस अवसर पर महाविद्यालय के अन्य वैज्ञानिक डा॰ जनार्दन प्रसाद, डॉ॰ अनिल कुमार, डॉ॰ तपन गोराई, डा॰ विकास कुमार, डा॰ पंकज कुमार मंडल, डा॰ शफी अफरोज, जाकिर हुसैन, डॉ चुन्नी कुमारी, स्नेहा, डॉ अल्पना, डा॰ बिभा कुमारी, डा॰ शुभ लक्ष्मी एवं कर्मचारियों ने सहयोग प्रदान किया। महाविद्यालय के स्नातक कृृषि के छात्र/छात्राओं में क्रमषः आर्दष, राजकिषोर, देवदास, राहुल, हर्ष, कुणाल कुमार, अभिषेक कुमार, हिमांषु, नितीन, रौषन, राहुल, आलोक, आर्दष, विवेक आरती, सादिया, रोमाना, मरियम, लवली भारती, अर्पूवा, वर्षा, सोनी, अनुषा, गुंजा, साक्षी कुमारी, अवंतिका कुमारी आदि ने उत्साह पूर्वक भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन आरती तथा धन्यवाद प्रथम वर्ष के छात्र कुणाल कुमार द्वारा किया गया।
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