- शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए कई सरकारी कार्यक्रमों का कराया जाता है क्रियान्वयन: सिविल सर्जन
- बीमार नवजात को 24 से 48 घंटों तक विशेष चिकित्सकीय देखरेख में रहने की होती है जरूरत: डॉ प्रेम प्रकाश
- स्वास्थ्य विभाग के सहयोग से चलाया गया जागरूकता अभियान: पिरामल स्वास्थ्य
पूर्णिया: नवजात मृत्यु दर को कम करने के लिए स्वस्थ प्रसव तथा जन्म के बाद नवजात शिशुओं की सही व आवश्यक देखभाल की जरूरत को लेकर लोगों को जागरूक व शिक्षित करने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 15 से 21 नवंबर तक नवजात शिशु देखभाल सप्ताह मनाया जाता है। इस बार दिवाली और छठ महापर्व के कारण इसे 30 नवंबर तक बढ़ाया गया था। इसको लेकर राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय सह अस्पताल परिसर में समापन कार्यक्रम हुआ। इस अवसर पर सिविल सर्जन डॉ अभय प्रकाश चौधरी, एसएनसीयू के चिकित्सा पदाधिकारी डॉ अनिमेष कुमार, एएनएम स्कूल की प्राचार्या ऋचा ज्योति, पिरामल स्वास्थ्य के जिला लीड संजीव कुमार, डीएमएसओ संध्या कुमारी, डीपीएचओ सनत गुहा, गांधी फेलो ऋषिका और सिमरन सहित कई अन्य अधिकारी और कर्मी उपस्थित थे।
शिशु मृत्यु दर को कम करने को सरकार द्वारा कई कार्यक्रमों का कराया जाता है क्रियान्वयन: सिविल सर्जन
सिविल सर्जन डॉ अभय प्रकाश चौधरी ने कहा कि शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए सरकार द्वारा कई प्रकार के कार्यक्रमों का क्रियान्वयन कराया जाता है। जिसमें विशेष नवजात देखभाल इकाई (एसएनसीयू), गृह आधारित नवजात देखभाल (एचबीएनसी), छोटे बच्चों के लिए गृह आधारित देखभाल (एचबीवाईसी) और पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) के माध्यम से शिशु को आसानी से स्वस्थ्य रखा जा सकता है। किसी कारणवश आपका बच्चा निरोग नहीं हुआ है तो उसको पोषण पुनर्वास केन्द्र में पोषित करने के रखा जाता है। बच्चों के साथ उनकी माताएं रहकर देखभाल करती हैं। सबसे अहम बात यह है कि महिलाओं के कार्य का नुकसान नहीं हो इसके लिए विभागीय स्तर पर प्रतिदिन के हिसाब से राशि देने का प्रावधान है।
बीमार नवजात को 24 से 48 घंटों तक विशेष चिकित्सकीय देखरेख में रहने की होती है जरूरत: चिकित्सा पदाधिकारी
एसएनसीयू के चिकित्सा पदाधिकारी डॉ अनिमेष कुमार ने कहा कि जन्म लेने वाले बच्चे यानी इनबॉर्न व आउटबॉर्न किसी सरकारी व निजी संस्थान में जन्म लेने वाले बच्चे इलाज के लिए भर्ती कराये जा सकते हैं। क्योंकि बीमार नवजात को 24 से 48 घंटों तक विशेष चिकित्सकीय देखरेख में रहने की जरूरत होती है। इस दौरान नवजात की सेहत पर विशेष रूप से निगरानी रखी जाती है। स्थानीय विशेष नवजात देखभाल इकाई (एसएनसीयू) अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस है। इसमें रेडियो वॉर्मर, ऑक्सीजन की सुविधा, पीलिया से पीडित बच्चों के लिए महत्वपूर्ण फोटो थैरेपी सहित नवजात के लिए डाइपर जैसी मशीन की सुविधा उपलब्ध कराई गई है।
स्वास्थ्य विभाग के सहयोग से चलाया गया जागरूकता अभियान: पिरामल स्वास्थ्य
पिरामल स्वास्थ्य के जिला प्रमुख संजीव कुमार ने बताया कि नवजात शिशु सुरक्षा सप्ताह के दौरान आशा के द्वारा नवजात शिशु के घर ग्रह भ्रमण किया गया। समुदाय में जागरूकता को लेकर माताओं के साथ बैठक किया गया। जिसको लेकर स्वास्थ्य विभाग और पिरामल स्वास्थ्य द्वारा संयुक्त रूप से विशेष नवजात देखभाल इकाई (एसएनसीयू) और प्रसव कक्ष में इलाजरत नवजात शिशुओं की माताओं को जागरूक करने के उद्देश्य से एएनएम स्कूल की छात्राओं द्वारा नुक्कड़ नाटक का आयोजन किया गया। वहीं पोस्टर के माध्यम से प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। ताकि बच्चों के अभिभावक और माताओं को जागरूक कर नौनिहालों की ज़िंदगी को आसानी से बचाया जा सके।
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