पूर्णिया: दिनांक 17.01.2024 को इफको पूर्णियॉ के तत्वाधान से भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय, पूर्णियॉ में विकसित भारत अभियान अंतर्गत एक दिवसीय ब्रिक्री कार्मिक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर उपस्थित छात्र/छात्राओं को मतदान के महत्व पर भी राष्ट्रीय सेवा योजन इकाई द्वारा जागरूक करने हेतु नमो-नव मतदाता जागरूकता कार्यक्रम मेे ऑनलाईन जोडकर मतदान के प्रति जागरूक किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचार्य डा॰ पारस नाथ ने किया। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि इफको बिहार के मुख्य प्रबधक कृषि सेवा श्री ए के पालीवाल रहे। इस अवसर पर सह अधिष्ठाता-सह-प्राचार्य डॉ॰ पारस नाथ के द्वारा सभी आगत अतिथियों को फूलों का गुलदस्ता, महाविद्यालय का प्रतीक चिन्ह एवं अंगवस्त्र के द्वारा स्वागत किया गया। कार्यक्रम के प्रारंभ में प्रथम वर्ष के छात्र-छात्राओं द्वारा स्वागत गान प्रस्तुत किया गया। इसके बाद कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ उपस्थित सभी अतिथियों ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्जवलित करके किया। अपने स्वागत अभिभाषण मे डॉ0 नाथ सह अधिष्ठाता-सह-प्राचार्य, भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय, पूर्णियाँ ने विगत 13 वर्षों में कृषि महाविद्यालय, पूर्णियाँ की उपलब्धियों की विस्तृत जानकारी दिए जिसमेें महाविद्यालय में कृषि षिक्षा, शोध, प्रसार एवं प्रषिक्षण के साथ साथ अन्य गतिविधियों के द्वारा किये गये कार्यों का विस्तार पूर्वक जानकारी दिए। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ पारस नाथ ने नैनो उर्वरको के अच्छे प्रभाव उनका आधुनिक खेती में उपयोग एवं आने वाले समय में कृषि की रूपरेखा के उपर चर्चा की।
साथ ही साथ उन्होने बताया कि ढैचा एवं सनई की फसल को हरी खाद के रूप में, वर्मीकम्पोस्ट (केचूआ खाद), जैविक खाद (गोबर की खाद) एवं जैव उर्वरक का अधिक से अधिक उपयोग करें जिससे आप सभी के खेतों में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा संतुलित हो सकें। आज भी लगभग 70 प्रतिशत किसान कृषि उपादान का क्रय बिक्रेताओं के सलाह पर ही करते हैं। आप सभी कृषि उपादान बिक्रेताओं का यह कर्तव्य है कि किसानों को उनके आवश्यकता के अनुरूप उचित सलाह देते हुए सही उपादान का विक्रय करें जिससे फसलों के उत्पादन लागत कम हो एवं उत्पादकता में वृद्धि हो जिससे अधिक से अधिक किसान लाभान्वित हो सके। आने वाले समय मे देश को युरिया के स्थान पर नए रासायनिक उर्वरक को उसकी क्षमता के अनुरूप स्वीकार करना होगा तभी जाकर वर्ष 2047 तक विकसित भारत का सपना साकार हो सकेगा। मतदाता जागरूकता पर चर्चा करते हुए उन्होने कहा कि भारत सरकार द्वारा नव मतदाता जागरूकता कार्यक्रम आने वाले समय में लोकतंत्र को बनाए हेतु अधिक से अधिक युवाओ की भागीदारी को सुनिश्चित करेगां। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि इफको बिहार के मुख्य प्रबधक कृषि सेवा श्री ए के पालीवाल रहे उन्होने अपने संबोधन में सबसे पहले उपस्थित सभी लोगो को बताया कि बढती जनसंख्या के साथ हम सभी को कृषि की नई तकनीकियों, विभिन्न प्रजातियों एवं नये उर्वरको को अपना होगा तभी जाकर बढती जनसंख्या के खाद्यान के आपुति संभव हो पाएगी। श्री पालीवाल ने इफको नैनो यूरिया एवं नैनो डीएपी के उपयोग विधि एवं लाभ के बारें में विस्तृत पूर्वक चर्चा की। उन्होंने बताया की नैनो उर्वरक न सिर्फ पर्यावरण हितैषी है बल्कि फसल उत्पादकता को भी बढ़ाता है साथ ही साथ उत्पादन लागत में काफी कमी आती है। नैनो यूरिया एवं डीएपी के इस्तेमाल से मृदा स्वास्थ्य सुरक्षित रहता है और कीट एवं खरपरतवार का भी प्रकोप कम रहता है। उन्होेंने इफको के विभिन्न उत्पादों एवं उसके बेहतर उपयोग पर विस्तार पूर्वक चर्चा करते हुए बताया कि उर्वरक निर्माण के 24 महीने के अन्दर इसका उपयोग कर लिया जाना चाहिए। यदि नैनो यूरिया के छिड़काव के 12 घंटे के अन्दर बारीश हो जाती है तो इसका दोबारा स्प्रे करने की सलाह दी जाती है।
भारत सरकार द्वारा 02 मार्च, 2023 को उर्वरक अध्यादेष 1985 के अन्तर्गत अधिसूचित किया गया। समय के साथ साथ इफको द्वारा नये नये उत्पाद किसानो तक पहुचाये जा रहे है जिससे कृषि का उत्पादन एवं मृदा स्वास्थ भविष्य के लिए बना रहें। मृदा वैज्ञनिक डॉ जर्नादन प्रसाद ने उर्वरक के बढते हानि प्रभाव के बारे में जानकारी प्रदान किया। मृदा नमूना लेने की विधि एवं मिट्टी जांच की विस्तार पूर्वक चर्चा करते मिट्टी में घटते कार्बन की मात्रा पर चिन्ता व्यक्त की तथा किसानों से अनुरोध किया की बिना मिट्टी जाँच के किसी भी प्रकार के रासायन का प्रयोग मिट्टी में ना करें। प्रशिक्षण कार्यक्रम के तकनीकी सत्र में मृदा वैज्ञानिक डा0 पंकज कुमार यादव द्वारा अपने व्याख्यान में बताया कि 1950-1951 से 2021-2022 में प्रति व्यक्ति खेती योग्य भूमि लगभग 5 गुना कम हो गई है, साथ ही साथ जनसंख्या 33 करोड़ से बढ़कर 135 करोड़ हो गया है। समेकित पोषक तत्व प्रबंधन पर विस्तृत चर्चा करते हुए बताया कि रासायनिक उर्वरकों के निरंतर प्रयोग से मिट्टी का स्वास्थ्य लगातार खराब होता जा रहा है। इसमें नैनो यूरिया एवं डीएपी एक बेहतर विकल्प होगा। बिहार में प्रति हेक्टेयर उर्वरक की औसत खपत 196 किलोग्राम है जो राष्ट्रीय खपत से करीब 66 किलोग्राम अधिक है, किसान खेती में अपने कुल पूँजी का करीब 45 प्रतिशत से अधिक खर्च उर्वरक पर करता है। यदि प्रति हेक्टेयर उर्वरक उपयोग की बात करें तो 1950-51 में 490 ग्राम था, जो आज बढ़कर 130 किलोग्राम हो गया है। भारत चीन के बाद दुनिया में उर्वरकों का प्रयोग करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है। किसान सबसे ज्यादा उर्वरको में यूरिया, डीएपी, एमओपी, एनपीके एसएसपी, जिंक सल्फेट, कॉपर सल्फेट आदि का प्रयोग करता हैं। नई युरिया पालीसी आने के बाद किसानो में अधिक युरिया प्रयोग करने की मांग में कमी आई है। डॉ अनिल कुमार ने कहा कि वर्तमान परिवेष में प्रायः देखा जाता है कि एक फीट खडे पानी में मखाना उत्पादक किसान मखाना फसल में यूरिया एवं डीएपी को छिडकाव करतेे है जो लाभप्रद नही होता है। आने वाले समय में मखाना की फसल में सागरिका, नैनो यूरिया एवं डीएपी का छिडकाव काफी लाभदायक होगा।
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