पूर्णिया: दिनांक 22 दिसंबर 2023 को भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय, पूर्णियाँ बिहार एवं कृषि विज्ञान केन्द्र, जलालगढ़, पूर्णिया के संयुक्त तत्वावधान में उद्यान निदेशालय, पटना, कृषि विभाग बिहार सरकार द्वारा प्रायोजित मखाना विकास योजना अंतर्गत एक दिवसीय मखाना उत्पादन तकनीक विषय पर प्रशि़क्षण कार्यक्रम-सह- सबौर मखाना-1 बीज वितरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। मखाना उत्पादन तकनीक विषय पर 01 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में खगड़िया जिले के कुल 40 मखाना उत्पादक किसानों ने प्रशिक्षण हेतु अपना पंजीकरण कराया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचार्य डा॰ पारस नाथ ने किया। सभी आगत अतिथियों, किसानों एवं वैज्ञानिकों ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ किया। सभी मंचासीन आगत अथितियों का फूलों का गुलदस्ता प्रदान कर स्वागत किया गया। अपने स्वागत अभिभाषण मे डॉ0 नाथ सह अधिष्ठाता-सह-प्राचार्य एवं नोडल पदाधिकारी, मखाना विकास योजना, भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय, पूर्णियाँ ने विगत 13 वर्षों में कृषि महाविद्यालय, पूर्णियाँ की उपलब्धियों की विस्तृत जानकारी दिए। अपने उद्बोधन में उन्होंने बताया कि कोसी क्षेत्र के मखाना उत्पादक किसानों के सर्वांगिण विकास हेतु महाविद्यालय हर सम्भव प्रयास कर रहा है, जिससे किसानों की बेकार पड़ी जल-जमाव वाली जमीनों का सदुपयोग हो सके एवं उनका सामाजिक एवं आर्थिक उन्नयन हो। इसके लिए मखाना वैज्ञानिक तथा प्रधान अन्वेषक डा॰ अनिल कुमार की टीम लगातार कार्य कर रही है। कोसी नदी को बिहार का शोक कहा जाता है, इस क्षेत्र में मखाना की अपार संभावना है, इसके लिए जल-जमाव क्षेत्रों का उपयोग कर शोक को वरदान में बदलने की योजना है। इसके लिए बिहार सरकार द्वारा मखाना विकास परियोजना के नाम से कोसी क्षेत्र के 9 जिलों में कार्य प्रारंभ किया जा चुका है।
साथ ही साथ मखाना किसानों को प्रशिक्षण प्रदान कर तकनीकी रूप से लैस करना है जिससे मिट्टी एवं पानी को बिना छति पहुँचाये उत्पादन को बढ़ाया जा सके। उन्होंने बताया कि मखाना की खेती में सबसे बड़ी समस्या खेत से मखाना बीज की बुहराई एवं बीज से लावा बनाना। जिसमे से एक समस्या के निदान हेतु मखाना आधुनिक प्रसंस्करण यंत्र की स्थापना कृषि महाविद्यालय, पूर्णिया की जा चुकी है। तकनीकी जानकारी देते हुए डॉ0 नाथ ने कहा कि मखाना बीज (गुर्री) उपचार करने के लिए बीज को नर्सरी में डालने के पूर्व इमिडाक्लोप्रीड 70 अथवा थायोमेथोक्सैम 70 के 5 ग्राम मात्रा प्रति किग्रा0 बीज (गुर्री) की दर से उपचार करना चाहिए। साथ ही साथ ही उन्होने मखाना कि विभिन्न कीट एवं व्याधियो पर विस्तार पूर्वक चर्चा किये। तकनीकी सत्र में मखाना वैज्ञानिक तथा प्रधान अन्वेषक डा॰ अनिल कुमार ने कहा कि बिहार सरकार उद्यान निदेशालय, पटना द्वारा किसानों के हित में चलायी जा रही विभिन्न योजनाओं की तकनीकी जानकारी के साथ साथ सब्सीडी आदि के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी प्रदान की। सरकार का लक्ष्य है कि किसानों की आय को दोगुणा कैसे किया जाय इसके लिए सरकार किसानों की प्रमुख समस्याओें पर विभिन्न समितियों के माध्यम से अध्ययन कर इसका निदान करने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार किसानों के हित में लगातार कार्य कर रही है, जिससे किसानों को अपने उत्पाद का उचित मूल्य प्राप्त हो सके। साथ ही उन्होंने कहा कि बनमनखी प्रखण्ड के जानकीनगर क्षेत्र में मखाना उत्पादक कृषकों का लगभग 500 हेक्टेयर क्षेत्रफल का नया क्लस्टर चिन्हित कर मखाना उत्पादक कृषकों को सबौर मखाना-1 का बीज वितरीत किया गया, जिससे आनेवाले समय में कृषकों की आय को बढ़ाया जा सके। मखाना उत्पादन के लिए वैज्ञानिक विधि से पौधशाला तैयार करने की विस्तार पूर्वक जानकारी देते हुए बताया कि मखाना बीज की बुआई का समय सबसे उपयुक्त दिसम्बर माह होता है, यदि मखाना कि नर्सरी तैयार करना है तो बीजदर रोपाई हेतु 22-25 किग्रा0 प्रति हे0 तथा सीधी बुआई हेतु 40-45 किग्रा0 प्रति हे0 कि आवश्यकता पडती है। एक हैक्टेयर मखाना के रोपाई हेतु पौधशाला का क्षेत्रफल 500-600 वर्ग मी0 में तैयार करना आवश्यक होता है।
पौधशाला में जल की गहराई खेत पद्धति हेतु लगभग 6 ईंच एवं तालाब पद्धति हेतु लगभग 5-6 फीट रखा जाता है। पौधशाला में मखाना बीज (गुर्री) खेत/तालाब के निचली सतह पर करना चाहिए। डॉ0 पंकज कुमार यादव ने मखाना में पोषक तत्वों का प्रबंधन, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन पर विशेष जोर देते हुए कहा कि रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कम से कम करें। किसी भी फसल को लगाने से पूर्व मिट्टी की जाँच कराना अत्यंत आवश्यक है, जिसके लिए भारत सरकार द्वारा सभी किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध कराने की योजना चलायी जा रही है। मिट्टी जाँच से पूर्व मृदा नमूना लेने की विधि एवं मिट्टी जांच की विस्तार पूर्वक चर्चा करते मिट्टी में घटते कार्बन की मात्रा पर चिन्ता व्यक्त की तथा किसानों से अनुरोध किया की बिना मिट्टी जाँच के किसी भी प्रकार के रासायन का प्रयोग मिट्टी में ना करें। साथ ही साथ उन्होने बताया कि ढैचा एवं सनई की फसल को हरी खाद के रूप में, वर्मीकम्पोस्ट (केचूआ खाद), जैविक खाद (गोबर की खाद) एवं जैव उर्वरक का अधिक से अधिक उपयोग करें जिससे आप सभी के खेतों में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा संतुलित हो सकें। मखाना फसल हेतु 75ः45ः30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से नाइट्रोजन, फासफोरस एवं पोटैषियम के साथ-साथ 50 किग्रा0 चूने का प्रयोग प्रति हे0 अवष्य करें इस अवसर पर प्रखण्ड परबत्ता, खगड़िया के श्री पारस सिंह ने मखाना कृषकों के समस्या पर चर्चा करते हुए मखाने की उन्नत किस्मे, बीज की उपलब्धता, बोहराई यंत्र एवं लावा निकालने की मषीन के विकास की आवश्यकता की बात रखी तथा उन्होने कहा कि मखाना फसल के साथ मछली पालन हम सभी किसानों के लिए काफी लाभकारी होगा किसानों को इस प्रकार का प्रशिक्षण समय-समय पर सरकार द्वारा मिलता रहे तो बिहार के सभी मखाना उत्पादक किसानों को लाभ मिलेगा। मखाना उत्पादन तकनीक विषय पर 01 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में खगड़िया जिले के कुल 40 मखाना उत्पादक किसानों ने प्रशिक्षण हेतु अपना पंजीकरण कराया। जिसमें प्रमुख रूप से क्रमश: अनीश कुमार- प्रखण्ड उद्यान पदाधिकारी, परबत्ता, खगड़िया, पंकज कुमार, प्रखण्ड उद्यान पदाधिकारी, खगड़िया, राजीव कुमार, अरूण कुमार, रमेश कुमार, सतीष कुमार, सुर्य भूषण सिंह, सनोहर सिंह, पारस सिंह, राजेश कुमार, दीपक दास, अरूण सिह, अविनाश कुमार, अमित कुमार, शंभु कुमार वर्मा, जोगेश्वर कुमार, रामानंद सिंह, सिकन्दर सिंह, नितीश राज, मनीष कुमार, बंगट कुमार, अभिनन्दन कुमार आादि ने उत्साह पूर्वक भाग लेकर प्रशिक्षण पाप्त किया।
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