सहरसा, अजय कुमार: गायत्री शक्तिपीठ में रविवार को व्यक्तित्व परिष्कार सत्र का आयोजन किया गया।सत्र को संबोधित कर डाॅ अरूण कुमार जायसवाल ने कहा ये धन, वैभव,यश, प्रतिष्ठा जो कुछ भी संसार में मिलता है। वह एक नशे की तरह होता है,जो आपको भ्रमित करेगा। यह सब भी एक नशा है।यह मनुष्य की चेतना को भ्रमित करता है।नशा हमारे जीवन की प्रकृति नहीं है।जीवन की विकृति है।इससे मुक्त होने के लिए पुनर्वास है।शांति बाहर नहीं है, शांति मन के अंदर है।जो ऋषि लोग होते हैं वह भी निरंतर तपस्या करते रहते हैं।असल बात तृप्ति अपने आप में है।बाहर नहीं है।संसार के धन पद,वैभव मान-सम्मान में नहीं है।सुख काम हमेशा अवसाद में होता है ,अतृप्ति में होता है।दुख का अंत विषाद में होगा।जब दुख खत्म हो जाता है तब हम प्रसन्न हो जाते हैं।दुख मेंअगर आप जाग गए तो दुख आपको शांति भी देगा। रसखान, कबीर, रैदास के जीवन में तृप्ति हुआ। जीवन की सवसे बड़ी संपदा विवेक और वैराग्य है।विवेक और वैराग्य में कोई एक चीज पूर्ण हो जाय तो जीवन पूर्ण हो गई। संसार में चाहे कुछ मिले न मिले न पाने का दर्द नहीं,समय निरर्थक गुजर गया इसका दर्द होना चाहिए।
आत्म कल्याण के लिए सार्थक उपयोग किया जा सकता है।नहीं तो टीस जरूर रह जाती है।लोभ की प्राप्ति के लिए टीस नहीं उठनी चाहिए,आत्म प्राप्ति के लिए टीस उठनी चाहिए। उन्होंने कहा-शब्दों में ज्ञान नहीं होता। शब्द एक महाजंगल है,महा वन है।इसमें आपका चित्त भटकता रहता है।उपनिषद भी यही कहता है।कुछ सुनने से कुछ नहीं होता, ज्ञान लेने से भी कुछ नही होता, लेकिन शब्द का जो अर्थ है, भाव है वह जब आपके मन में जब किसी तरह घुलता है,स्वाद आता है तब बात बनती है।उपदेश सुनने का अर्थ है जिससे मन शांत हो,मन स्थिर हो,परमात्मा में रम जाय।ज्ञान की बातें पास रहकर सुनना उपदेश इसी का नाम है।क्योंकि संसार कभी तृप्ति नहीं दे सकती, तृप्ति हमेशा आपकी चेतना की अवस्था में मिलती है। इन्दौर मध्यप्रदेश से आये डाॅक्टर आनंद ढिंगरा ने कहा दिल से गायत्री मंत्र जपते के कारण मैने अपने जीवन में अनेक चमत्कार देखे।पटना से आये प्रिंसिपल पंकज एवं सहरसा इन्जीनियरिंग कॉलेज के प्रोफेसर पूनम ने भी सत्र को संबोधित किया।
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