पूर्णिया : दिल जो ‘दीवाना’ होता है!
हर बात ‘रुहानी’ होती है!!
फिर सखे साथ जब होते हैं!
हर शाम सुहानी होती है!!
“एकान्त क्षणों में रमते हैं!
हों अगर संग तो जमते हैं!!
बतिया मनमीत सुनाते हैं!
ख्वाबों में आकर छाते हैं !!
“ये हृदय कमल यूं मिलते हैं!
लुकछिप के यारा खिलते हैं!
हर ‘बहस पुरानी होती है!
फिर नई कहानी होती है!!
“अक्सर वो आहें भरते हैं!
इक–दूजे पर वो मरते हैं !!
अपनेपन की परिभाषा को!
नित अपने हित में गढ़ते हैं!!
“वे आशिक यारी पढ़ते हैं!
इक नई ‘आशिकी’ मढ़ते हैं!!
मिल गीत सुरों में गाते है!
हम से ‘हम-दम’ हो जाते है!!
“जब नया सवेरा आ जाये!
यह तन–मन हर्षित हो जाये!!
मिल गीत ‘खुशी’ के गायेंगे!
‘दुनिया’ सच नई बसायेंगे !!
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