पूर्णिया: रेणु जी न केवल पैदायशी किसान थे बल्कि शोषित और वंचित समाज के प्रतिनिधि भी थे।उन्होंने ऐसे समाज के लोगों को अपनी लेखनी के माध्यम से आवाज देने का काम किया।उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से समाज मे व्याप्त कुप्रथा,अंधविश्वास, जातिगत भेदभाव और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद किया था ।उन्होंने हिंदी साहित्य को आंचलिकता का बोध कराया था।मैं मानता हूँ कि आज रेणु की माटी को एक और फणीश्वरनाथ की जरूरत है जो इन तमाम विसंगतियों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर सके। दूसरी बात यह कि इस मंच के माध्यम से मैं भारत सरकार से मांग करता हूँ कि वे हिंदी साहित्य के कोहिनूर रेणु जी को भारत रत्न से सम्मानित करें जिसके वे सच्चे हक़दार हैं।
उनका सम्मान देश की करोड़ों शोषितों और वंचितों का सम्मान होगा।उक्त बातें सांसद संतोष कुशवाहा ने सोमवार को पूर्णिया नवनिर्माण मंच द्वारा टाउन हॉल में आयोजित फणीश्वरनाथ रेणु जी के 104 वा जयंती समारोह के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए कही।उद्घाटन से पूर्व सांसद श्री कुशवाहा ने रेणु उद्यान में स्व रेणु की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें नमन किया।सांसद एवं अन्य अतिथियों ने ‘शब्द शिल्पी रेणु’ नामक पुस्तक का विमोचन भी किया।इस पुस्तक का संपादन डॉ रामनरेश भक्त और डॉ लव कुमार ने किया है।
सांसद श्री कुशवाहा ने कहा कि रेणु जी को प्रसिद्धि वर्ष 1954 में उनके लिखे उपन्यास मैला आँचल से मिली।मैं मानता हूँ कि मैला आँचल भारत के सर्वश्रेष्ट हिंदी उपन्यासों में से एक है।जिसमें सीमांचल के पिछड़े और वंचित किरदार थे।गांव की जीवन शैली, गांव की भाषा, गांव की परंपरा और संस्कृति उनकी लेखनी का हिस्सा हुआ करता था जो उन्हें अन्य रचनाकारों से अलग करता है।कहा कि वे साहित्यकार ही नही समाजवादी और क्रांतिकारी भी थे।नेपाल में जब राजशाही के खिलाफ आंदोलन हुआ तो उसमें सक्रिय भागीदारी निभाया और जब जेपी आंदोलन हुआ तो उसके भी सिपाही बने।रेणु जी ने न तो दोहरा जीवन जिया और न ही उनके जीवन मे कोई लुकाव-छिपाव था।वे जब गांव में होते थे तो धान की रोपनी भी करते थे और पटना में होते थे तो शाम का समय कॉफी-हाउस में गुजरता था।
अंत मे एक बार फिर कहना चाहूंगा कि केंद्र सरकार रेणु जी को भारत रत्न से नवाजे, इसके लिए मुझे सदन से लेकर सड़क तक जो भी प्रयास करना होगा, करूंगा, क्योंकि यह मेरा दायित्व और धर्म बनता है क्योंकि हम सब रेणु माटी के मानुष हैं।कहा कि मैं जनभावना से सहमत हूँ कि पूर्णिया विश्वविद्यालय का नाम रेणु जी के नाम पर होना चाहिए।श्री कुशवाहा ने कहा कि हमारे नेता माननीय नीतीश कुमार जी स्व रेणु जी के विचारों को ही आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। कहा कि हमे पूरी उम्मीद है कि माननीय प्रधानमंत्री जी और मुख्यमंत्री जी रेणु जी को भारत रत्न से नवाजने का काम करेंगे। उन्होंने इस कार्यक्रम के लिए पूर्णिया नवनिर्माण मंच को साधुवाद दिया।
रेणु साहित्य के मर्मज्ञ डॉ सुरेंद्र नारायण यादव ने कहा कि रेणु जी शब्द-शिल्प के जादूगर थे।नटुआ की पीड़ा केवल मेरीगंज की ही पीड़ा नही बल्कि हर उस व्यक्ति की पीड़ा है जो दबे-कुचले और पीड़ित है।परती परिकथा के पात्र विमल के माध्यम से तंत्रवाद और गणतंत्रवाद को बड़ी करीने से रेखांकित करते हैं।वे समावेशी समाज के निर्माण के पैरोकार थे। वे कथाकार ही नही बहुत बड़े विचारक भी थे।उन्होंने पूरे विश्व का वैचारिक नेतृत्व किया।उन्होंने अपनी रचना ‘कलंक मुक्ति’ के माध्यम से पहली बार नारी-शक्ति को चाहरदीवारी से बाहर निकलने की कल्पना किया था। श्री यादव ने पूर्णिया विश्वविद्यालय का नाम फणीश्वरनाथ रेणु विश्वविद्यालय करने की मांग किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पूर्णिया नवनिर्माण मंच के अध्यक्ष शंकर कुशवाहा ने स्व रेणु को स्मरण करते हुए कहा कि उन्होंने पूर्णिया का नाम पूरे देश मे रोशन किया। ऐसे आंचलिक कथाकार बिरले ही पैदा होते हैं। वे मानवीय मूल्यों के संपोषक साहित्यकार थे और उनका मानना था कि किसी देश को सिर्फ भौतिक रूप से ही नही बल्कि उसे वैचारिक एवं सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध होना चाहिए।कहा कि उनका प्रयास रहेगा कि इस कार्यक्रम के माध्यम से सदैव रेणु जी को इसी तरह याद करते रहें।नवनिर्माण मच के सचिव अरुण कुमार विश्वास ने घोषणा किया कि आने वाले दिनों में इस मौके पर हम साहित्यकार अनुपलाल मण्डल को भी याद करेंगे।
कार्यक्रम को डॉ रामनरेश भक्त,डॉ अशोक कुमार आलोक, डॉ जितेंद्र कुमार, डॉ मो कमाल, डॉ कामेश पंकज आदि ने भी संबोधित किया।मंच संचालन संजय कुमार सिंह ने किया।इस मौके पर नवनिर्माण मंच के अध्यक्ष शंकर कुशवाहा, कोषाध्यक्ष मनीष कश्यप,प्रेमप्रकाश मण्डल, विपिन ठाकुर,भोला कुशवाहा,राजेश कुमार एवम् पूर्णिया नव निर्माण मंच के सभी पदाधिकारी सहित सैकड़ो साहित्यकार, कथाकार, गण्यमान व्यक्ति उपस्थित थे ।
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