पूर्णिया, अभय कुमार सिंह: जो श्रद्धापूर्वक दिया जाए, वही श्राद्ध है। उक्त बातें आनंदमार्ग के आचार्य दिव्यांनमेशानंद अवधूत जी महाराज बिरौली में शिक्षक मुकेश प्रसाद के पिता स्व0 कन्हैयालाल प्रसाद के श्राद्धकर्म पर पुरोहित की भूमिका निभाते हुए कह रहे थे। यह बता दें कि स्व कन्हैलाल प्रसाद का परिवार आनंदमार्गी है, इसलिए उनका श्राद्धकर्म भी आनंदमार्ग के द्वारा ही हुआ। इस श्राद्धकर्म के दौरान आचार्य अवधूत ने कहा कि जो श्रद्धापूर्वक दिया जाए, वही श्राद्ध है, अर्थात जब कोई विचार या चरम बिंदु सर्वोच्च मान लिया जाए, तब वह चरम बिंदु या विचार श्रत नाम से जाना जाता है। जब मन अपनी संपूर्ण वृत्तियां सहित उस उद्देश्य की ओर चलता है तो उस मानसिक गति को श्राद्ध कहते हैं। श्राद्ध के साथ जब कोई वस्तु दी जाती है, तो उसे श्राद्ध कहते हैं।
आनंदमार्ग पद्धति से श्राद्धकरने पर शांतिभोज की व्यवस्था नहीं होती है। सिर्फ मृत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है। इस श्राद्धकर्म में दिल्ली सेक्टर के आचार्य कृपानंद अवधूत, आचार्य मुनिवारानंद अवधूत, आचार्य रणधीर दादा, आचार्य सत्यनारायण दादा, तात्विक सुशील रंजन, आचार्य धीरजानंद अवधूत, आचार्य ब्रहमचारिणी लतिका, पूर्णिया मुक्ति प्रधान अखिलेश आनंद ने भी इस श्राद्धकर्म में भाग लिया तथा श्राद्ध के बारे में लोगों को बताया। इस दौरान स्वजनों ने गरीबों के बीच कंबल भी वितरण किये। मौके पर नगर पंचायत अध्यक्ष निरंजन मंडल, उपाध्यक्ष इंदू देवी, स्वजन के रूप में घनश्याम प्रसाद, राधेश्याम प्रसाद, मुकेश प्रसाद सहित अनेक शुभचिंतक एवं आनंदमार्गी उपस्थित थे।
Tiny URL for this post: