सहरसा, अजय कुमार: मिथिला के ह्रदय स्थली सहरसा के गंगजला निवासी आनंदी दास वर्ष 1972 से मूर्ति अपने हाथों से बनाकर विधि-विधान पूर्वक पूजन अर्चना करते हैं। उन्होंने बताया कि मां की महिमा अपरंपार है। उनकी पूजा आराधना करने से अपार सुख समृद्धि की प्राप्ति हुई है। उनके इस काम में उनके तीनों पुत्र चन्द्रशेखर, बिजली मिस्त्री बंटी तथा ब्रजेश कुमार खूब सहयोग करते हैं।उन्होंने बताया कि कि मैं विगत 50 वर्षों से आश्विन,माघ,चैत एवं आषाढ़ महीने में होने वाले चारों नवरात्र में पूरे 9 दिन उपवास व्रत रखकर स्वयं के खर्चे से मूर्ति अपने हाथों से बनाकर पूजा अर्चना कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अपने हाथों से दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश, कार्तिक, राम, लक्ष्मण, सीता, ब्रह्मा, विष्णु, महेश एवं बजरंगबली की मूर्ति बनाकर पूजा अर्चना किया जाता है। पंडित आचार्य रविंद्र झा, जटाशंकर झा, कन्हैया झा ने बताया कि नवरात्र के 9 दिनों में कलश स्थापन दुर्गा सप्तशती पाठ कन्या पूजन एवं हवन अनुष्ठान तथा 56 भोग का आयोजन किया जाता है। वर्ष में एक बार काली पूजा भी अपने हाथों से मूर्ति बनाकर की जाती है।
वयोवृद्ध आनंदी दास बताते हैं कि माता की मुझ पर बहुत बड़ी कृपा है। उनकी कृपा से आज सब कुछ भरा पूरा परिवार एवं सुख समृद्धि व्याप्त है। उन्होंने बताया कि 1972 में मेरा सारा संपत्ति परिजनों ने बेईमानी कर लिया। इसके बाद में दर-दर भटकने लगा। मेरा सारा परिवार तबाह हो गया। तब मैं श्मशान घाट में एक तांत्रिक के पास नौकरी करने लगा। जहां एक रात्रि माता ने अपना रूप बदलकर मेरी कुटिया में आयी। लेकिन मेरा दुर्भाग्य कि मैं उसे पहचान नहीं पायी। माता ने मुझसे रोटी मांग कर खायी। उनके आशीर्वाद से मुझे सरकारी नौकरी भी मिल गई और वहीं से मुझे भगवती की पूजा करने की प्रेरणा मिली। तब से आज तक मैं माता की साधना में लगा हुआ हूं। जिस कारण मेरी सभी इच्छाएं पूर्ण होती जा रही है। मंदिर निर्माण से लेकर पूजा पाठ मे होने वाले सभी स्वयं के खर्चे से वहन करते हैं। इसके लिए किसी से चंदा दान या सहयोग नही लेते हैं।
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